क्या संविधान की प्रस्तावना को बदला जा सकता है? पढ़ें- 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द को हटाने की क्यों हो रही मांग
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सुप्रीम कोर्ट में संविधान की प्रस्तावना में शामिल 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द को हटाने की मांग को लेकर तीन याचिकाएं दायर हैं. इनमें से एक याचिका बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की भी है. ऐसे में समझते हैं कि इन दोनों शब्दों को हटाने की मांग क्यों हो रही है?
क्या संविधान की प्रस्तावना को बदला जा सकता है? सवाल इसलिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना के दो शब्द 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' को हटाने की मांग करने वाली याचिका को अगस्त तक टाल दिया है. ये याचिका बीजेपी नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने दायर की है.
इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुब्रमण्यम स्वामी के अलावा दो और याचिकाएं दायर हैं. इसलिए जस्टिस संजीव खन्ना ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 12 अगस्त के बाद की तारीख पर सुनवाई करने को कहा है.
संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द को कैसे जोड़ा गया? अब इन दोनों शब्दों को हटाने की मांग किस आधार पर की जा रही है? और क्या वाकई ऐसा हो सकता है? जानते हैं...
1976 का वो 42वां संशोधन
जून 1975 से मार्च 1977 के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान में कई बार संशोधन किए. लेकिन सबसे बड़ा संशोधन दिसंबर 1976 में किया गया. इंदिरा सरकार ने संविधान में 42वां संशोधन कर दिया.
ये अब तक सबसे विवादित संशोधन माना जाता है. इस संशोधन के जरिए संविधान में कई सारे बदलाव किए गए थे, इसलिए इसे 'मिनी कॉन्स्टीट्यूशन' भी कहा जाता है.
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