कॉकस, प्राइमरी, इलेक्टोरल कॉलेज... अमेरिका कैसे चुनता है नया राष्ट्रपति? भारत से कितनी अलग है प्रक्रिया
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अमेरिका में हर चार साल में नवंबर महीने में चुनाव होते हैं. चुनाव के लिए देश की दोनों प्रमुख पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक से दावेदार खुद को नॉमिनेट करते हैं. खुद की दावेदारी पेश करते हैं. यानी चुनाव में उतरने के लिए पार्टी के भीतर भी दावेदारों को उम्मीदवारी जीतनी होती है. इसके लिए पार्टियां स्टेट प्राइमरी और कॉकस का आयोजन करती हैं.
अमेरिका में 5 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहे हैं. डेमोक्रेट कमला हैरिस और रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. देश के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के चुनाव पर दुनियाभर की नजरें होंगी. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया दुनिया की सबसे जटिल प्रक्रियाओं में से एक माना जाता है. यहां की राजनीति में प्राइमरी, कॉकस, इलेक्टोरल कॉलेज और स्विंग स्टेट्स काफी चर्चित शब्दावलियां हैं. आखिर अमेरिका अपना राष्ट्रपति कैसे चुनता है? इसे समझ लेना बहुत जरूरी है.
अमेरिका में हर चार साल में नवंबर महीने में चुनाव होते हैं. चुनाव के लिए देश की दोनों प्रमुख पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक से दावेदार खुद को नॉमिनेट करते हैं. खुद की दावेदारी पेश करते हैं. यानी चुनाव में उतरने के लिए पार्टी के भीतर भी दावेदारों को उम्मीदवारी जीतनी होती है. इसके लिए पार्टियां स्टेट प्राइमरी और कॉकस का आयोजन करती हैं. चुनाव की शुरुआत प्राइमरी और कॉकस से ही होती है, जो हर राज्य में आयोजित किए जाते हैं. इनके जरिए पार्टियों की ओर से आधिकारिक तौर पर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है. यह प्रक्रिया आमतौर पर चुनावी साल के जनवरी से शुरू हो जाती है.
क्या है प्राइमरी और कॉकस में अंतर?
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में यूं तो दो प्रमुख पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी का ही बोलबाला है. लेकिन एक ही पार्टी से राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के लिए दर्जनों दावेदार खड़े हो जाते हैं. इन दावेदारों में से एक का चुनाव कर आधिकारिक रूप से उसे पार्टी की ओर से चुनावी मैदान में उतारा जाता है. इसके लिए देश के लगभग हर राज्य में प्राइमरी और कॉकस बैठकों का आयोजन किया जाता है.
प्राइमरी के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होता है, जिसमें पार्टी के रजिस्टर्ड वोटर्स अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट करते हैं. कॉकस से अलग प्राइमरी का संचालन पोलिंग स्टेशन पर होता है. वोटर्स सामान्य तौर पर गोपनीय बैलट के जरिए अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करते हैं.
प्राइमरी आमतौर पर 2 तरह की होती है- क्लोज्ड प्राइमरी जिसमें सिर्फ पार्टी के रजिस्टर्ड वोटर्स हिस्सा लेते हैं जबकि दूसरी ओपन प्राइमरी है, जिसमें किसी भी पार्टी का मेंबर होना जरूरी नहीं है.
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