कांग्रेस की ये 6 मजबूरियां रही होंगी जो वरुण गांधी के लिए पार्टी में नहीं बन पाई जगह
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जिन लोगों को राजनीतिक खबरों में दिलचस्पी है उन्हें पता है कि वरुण गांधी का बीजेपी से टिकट कटना तय ही था. क्योंकि वो लगातार पीएम मोदी और यूपी में योगी सरकार को निशाने पर ले रहे थे. पर कांग्रेस में उनकी जगह क्यों नहीं बन सकी ये महत्वपूर्ण हो जाता है.
अगर वरुण गांधी की टीम की माने तो वो अब लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनकी टीम ने बुधवार को 'आज तक' को जानकारी दी कि वरुण अपनी मां मेनका गांधी के लिए सुल्तानपुर में चुनाव प्रचार पर फोकस करेंगे. यूपी भाजपा अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह का कहना है कि वरुण गांधी को इस बार पार्टी ने चुनाव लड़ने का अवसर नहीं दिया है, लेकिन वह हमारे साथ हैं. उनके बारे में पार्टी नेतृत्व ने जरूर कुछ बेहतर ही सोच रखा होगा. पीलीभीत से बीजेपी के जितिन प्रसाद के नाम की घोषणा होने के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने उन्हें कांग्रेस में आने का ऑफर दिया था और बीजेपी पर तंज कसा था उनके नाम में गांधी परिवार होने के चलते बीजेपी ने टिकट नहीं दिया. हालांकि जिन लोगों को राजनीतिक खबरों में दिलचस्पी है उन्हें पता है कि वरुण गांधी का बीजेपी से टिकट कटना तय ही था. क्योंकि वो लगातार पीएम मोदी और यूपी में योगी सरकार को टार्गेट पर ले रहे थे. सवाल यह है कि जब कई महीनों से वरुण के कांग्रेस में जाने की बात चल रही थी तो बात क्यों नहीं बनी? आइये कांग्रेस की मजबूरियों की चर्चा करते हैं.
1-विचारधारा का सवाल, वरुण ही नहीं संजय गांधी भी हिंदुत्व की विचारधारा के बहुत नजदीक थे
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों में जब किसी को शामिल नहीं करना होता तो विचारधारा के मुद्दे का बोर्ड लगा दिया जाता है. हालांकि शामिल करने के लिए हृदय परिवर्तन की बात कही जाती है. राहुल गांधी से पिछले साल एक इंटरव्यू के दौरान पूछा गया था कि क्या उनके चचेरे भाई वरुण कांग्रेस में लौटें तो उनका स्वागत होगा? इसका उत्तर देते हुए राहुल ने कहा था कि हमारी विचारधाराएं समान नहीं हैं. राहुल गांधी ने कहा था, 'उन्होंने किसी समय, शायद आज भी, उस विचारधारा (भाजपा की विचारधारा) को स्वीकार किया और उसे अपना बना लिया. मैं उस बात को कभी स्वीकार नहीं कर सकता. मैं उनसे मिल जरूर सकता हूं, उन्हें गले लगा सकता हूं, लेकिन उस विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकता, जिससे वह जुड़े हैं. मेरे लिए असंभव है.
वरुण गांधी खुद भी तीन बार बीजेपी की विचारधारा के साथ ही संसद में पहुंच चुके हैं. इसके साथ ही उनकी मां तो लगातार सांसद और मंत्री बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार मे ही रही हैं. वरुण गांधी तो इस कदर कट्टर हिंदू हो चुके हैं कि एक बार उनपर अल्पसंख्यकों के खिलाफ उकसाऊ भाषण देने के आरोप में एफआईआर भी हो चुकी है.वरुण गांधी पर पीलीभीत में एक बार चुनाव प्रचार के दौरान अल्पसंख्यकों के बारे में आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए भड़काउ भाषण देने का आरोप लगा था . उन्होंने इस चुनावी सभा में कहा, ये हाथ नहीं है, ये कमल की ताकत है जो किसी का सिर कलम कर सकता है.वरुण गांधी के पिता संजय गांधी को भी हिंदुत्व के लिए समर्पित माना जाता रहा है.
कहा जाता है कि लाल किले के पास एक मुस्लिम बस्ती को जिसे दिल्ली में मिनी पाकिस्तान के नाम से उस दौर में जाना जाता था उसे संजय गांधी ने जबरन खाली कराया था. प्रसिद्ध पत्रकार तवलीन सिंह ने अपनी किताब में लिखा है कि संजय गांधी ने स्लम रिमूवल के नाम पर इमरजेंसी के समय किस तरह यह काम किया था. इस काम की जिम्मेदारी उन्होंने अपने पसंदीदा अधिकारी जगमोहन मल्होत्रा को दी . ऐसा बताया जाता है कि जगमोहन ने एक मीटिंग में कहा था कि जामा मस्जिद के बीच सारी चीजों को हटा दिया जाए. मैं दूसरा पाकिस्तान नहीं चाहता. हालांकि जगमोहन ने ऐसी किसी मीटिंग की बात को बाद में नकार दिया था. ये वही जगमोहन हैं जो बाद में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बने और एक बार फिर लाल किले के आसपास के अवैध कब्जों को खत्म करवाया.
2- राहुल के हर प्रतिद्वंद्वी को जड़ में ही खत्म करना पार्टी की मजबूरी
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