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कभी हिंदू और बौद्ध बहुल रह चुका मालदीव कैसे बना इस्लामिक राष्ट्र?
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हफ्तेभर पहले मालदीव में मोहम्मद मुइज्जू नए राष्ट्रपति बने. इसके बाद से वहां भारत विरोधी बयानबाजियां फिर शुरू हो गईं. सुन्नी-बहुल देश में कट्टरता के हाल ये है कि वहां किसी नॉन-मुस्लिम को नागरिकता तक नहीं मिलती, न ही वे अपने धर्म की प्रैक्टिस पब्लिक में कर सकते हैं. इसी देश में किसी समय हिंदू और बौद्ध धर्म के लोगों की बहुलता हुआ करती थी.
सत्ता में आई प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव को उसके भारत-विरोध के लिए जाना जाता है. इसकी झलक भी नए राष्ट्रपति ने आते ही दे दी. उन्होंने कहा कि वे मालदीव से विदेशी सेना को निकाल-बाहर करेंगे. यहां बता दें कि इस पार्टी ने कैंपेन के दौरान भी इंडिया आउट नारा दिया था. ये स्थिति तब है जबकि किसी समय इस बेहद खूबसूरत द्वीप देश में ज्यादातर आबादी हिंदू थी. इतिहासकार ये भी मानते हैं कि यहां के शासक भारत के चोल साम्राज्य से थे. लेकिन तब कैसे ये देश पूरी तरह से इस्लामिक हो गया. आइए, जानते हैं.
भारत कैसे पहुंचा वहां?
भारतीय शासक मालदीव तक कैसे पहुंचे, इस बारे में अलग-अलग मत हैं. ज्यादातर स्कॉलर्स का मानना है कि चोल साम्राज्य से भी पहले वहां कलिंग राजा ब्रह्मदित्य का शासन था. ये 9वीं सदी की बात है. इसके बाद राजसी शादियों के जरिए वहां तक चोल वंश पहुंच गया. 11वीं सदी में मालदीप पर महाबर्णा अदितेय का शासन रहा, जिसके प्रमाण वहां आज भी शिलालेखों पर मिलते हैं.
अरब व्यापारियों का असर बढ़ता गया
इसी दौर में मालदीव तक बौद्ध धर्म भी पहुंच चुका था और अरब व्यापारियों के जरिए इस्लाम भी. हिंदू धर्म को मानने वाले तेजी से बौद्ध धर्म अपनाने लगे, लेकिन ज्यादातर ने इस्लाम अपना लिया. क्यों? इसकी वजह भी साफ नहीं है. 12वीं सदी में आखिरी बौद्ध शासक धोवेमी ने भी इस्लाम धर्म को अपना लिया. उनका नाम अब मुहम्मद इब्न अब्दुल्ला था. इसके बाद से लगभग पूरे देश का इस्लामीकरण हो गया. इस बात का जिक्र 'नोट ऑन द अर्ली हिस्ट्री ऑफ मालदीव्स' नाम की किताब में मिलता है.
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