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कट्टरपंथियों की कठपुतली बनकर रह गए मोहम्मद यूनुस, 'तख्तापलट' के 4 महीने बाद किस हाल में बांग्लादेश?
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नौकरियों में आरक्षण हटाने को लेकर स्टूडेंट प्रोटेस्ट के कुछ ही हफ्तों बाद शेख हसीना को पद छोड़ना पड़ा. अब अंतरिम सरकार के सलाहकार बतौर यूनुस मोहम्मद बांग्लादेश के लीडर हैं. लेकिन ये देश अब अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा को लेकर घिर चुका है. जानिए, हसीना की रवानगी के चार महीने बाद से इस पड़ोसी देश में क्या-क्या बदला.
राजनैतिक उठापटक के बीच अगस्त में शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ गया. इस बीच खूब तामझाम के साथ मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया. उम्मीद थी कि इसके बाद देश की राजनैतिक-आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पटरी पर आ जाएगी, हालांकि ऐसा हुआ नहीं. इसके उलट देश कुछ और अशांत लग रहा है. आर्थिक से लेकर फॉरेन पॉलिसी के मामले में क्या हसीना का दौर ज्यादा बेहतर था? जानें, क्या कहते हैं की-इंडिकेटर्स.
क्यों हुआ सत्ता में बदलाव
बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में सुधार को लेकर जून से लगातार प्रोटेस्ट हो रहे थे. लोगों की मांग थी कि योग्यता के आधार पर नौकरी मिले, न कि कोटा पर. दरअसल, यहां सरकारी जॉब में एक तिहाई पद उन लोगों के लिए था, जिनके पुरखों ने साल 1971 में हुए आजादी के आंदोलन में भाग लिया था. इससे मेरिट वालों के लिए बहुत कम गुंजाइश रह जाती थी. हसीना इसे लेकर घिर गईं. वे बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं. उनके बारे में कहा जाने लगा कि वे जानबूझकर आजादी में हिस्सा ले चुके परिवारों के बच्चों के लिए 30 प्रतिशत सीटें रखे हुए हैं. सड़कों पर आया सैलाब इतना आक्रामक हुआ कि 5 अगस्त को तख्तापलट ही हो गया.
इसके बाद मोहम्मद यूनुस को अंतरिम मुख्य सलाहकार के तौर पर चुना गया. नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस के साथ ही उम्मीद थी कि बांग्लादेश की इमेज बेहतर ही होगी, लेकिन की इंडिकेटर्स कुछ और ही बताते हैं. देश में लॉ एंड ऑर्डर के हाल खराब हैं. बांग्लादेशी अखबार प्रोथोम अलो के साथ एक इंटरव्यू में खुद यूनुस को मानना पड़ा कि बांग्लादेश अल्पसंख्यकों के लिए कभी भी सेफ नहीं था, लेकिन हसीना सरकार का गिरना उन्हें और कमजोर बना गया.
अल्पसंख्यकों को लेकर घिर रहा देश
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