...इतना सस्ता मिलना चाहिए पेट्रोल-डीजल? कच्चे तेल के मुताबिक ये बैठता है गणित
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ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों में आई इस गिरावट से भारतीय बास्केट यानी जिस औसत दाम पर भारतीय कंपनियां कच्चा तेल खरीदती हैं, उसकी लागत मार्च के औसत 112.8 डॉलर प्रति बैरल से घटकर 82 डॉलर प्रति बैरल हो गई है.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 10 महीने के न्यूनतम स्तर पर लुढ़क गया है. इसके बाद सबकी नजर भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम पर लगी है कि आखिर इनमें कब कमी आएगी? इस कमी की संभावना को जानने के लिए हमें कुछ आंकड़ों को समझना होगा. सबसे पहले तो बात करते हैं कच्चे तेल की कीमतों के बारे में जिनमें सबसे प्रमुख ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) का भाव सोमवार को 2.6 डॉलर/बैरल यानी 3 फीसदी से ज्यादा कम होकर 80.97 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया. ये इस साल की शुरुआत में 4 जनवरी के बाद का सबसे कम भाव है. ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) ऑयल की कीमतों में आई इस गिरावट से भारतीय बास्केट यानी जिस औसत दाम पर भारतीय कंपनियां कच्चा तेल खरीदती हैं, उसकी लागत मार्च के औसत 112.8 डॉलर प्रति बैरल से घटकर 82 डॉलर प्रति बैरल हो गई है.
तेल कंपनियों के पास दाम घटाने की गुंजाइश क्रूड ऑयल की कीमतों में आई इस कमी से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के पास भी पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने की गुंजाइश हो गई है. दरअसल, कच्चे तेल की कीमतों में कमी से पेट्रोल कंपनियों की लागत में कमी आई है. ऐसे में भारतीय भारतीय बास्केट में ब्रेंट क्रूड का भाव मार्च के मुकाबले 30 डॉलर प्रति बैरल तक सस्ता होने से उनको अब पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर नुकसान की जगह मुनाफा होने लगा है. मौजूदा रेट को देखें तो तेल मार्केटिंग कंपनियों के पास पेट्रोल के दाम 6 रुपये प्रति लीटर और डीजल का दाम 5 रुपये प्रति लीटर तक घटाने की गुंजाइश है.
क्या तेल कंपनियां घटाएंगी दाम? तेल मार्केटिंग कंपनियां दाम घटाने का फैसला करने से पहले इस साल कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से हुए नुकसान की भरपाई करने को तरजीह दे सकती हैं. हालिया आंकड़ों के मुताबिक जुलाई-सितंबर तिमाही में IOCL, HPCL और BPCL को पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर 2748.66 करोड़ का नुकसान हुआ है. अगर सरकार ने बीते 2 साल में LPG की बिक्री पर हुए घाटे की भरपाई ना की होती तो ये नुकसान काफी ज्यादा हो सकता था. सरकार ने तेल मार्केटिंग कंपनियों को 22 हज़ार करोड़ की एकमुश्त रकम चुकाकर LPG की बिक्री पर हुए घाटे की भरपाई की थी. इसके बावजूद इन कंपनियों के पूरे नुकसान की भरपाई ना होने से तेल कंपनियों के लिए दाम घटाना आसान नहीं है.
क्यों घटे कच्चे तेल के दाम? कच्चे तेल की कीमतों में कमी की वजह दुनिया के कई देशों पर छाए मंदी के काले बादल हैं. ऐसे में डिमांड घटने से आर्थिक रफ्तार सुस्त होने की आशंका बढ़ गई है. इससे चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों में इस बार सर्दियों में डिमांड में कमी हो सकती है. इस सबके चलते सेंटीमेंट्स कमजोर हो गए हैं और कच्चे तेल की कीमतों पर दबाव बढ़ता जा रहा है. इसके साथ ही कई देशों में ब्याज दरों में जारी बढ़ोतरी का दौर और चीन में लॉकडाउन ने भी कच्चे तेल के दाम कम करने का काम किया है. इससे आशंका है कि आने वाले कुछ महीनों तक हालात सुधरने की उम्मीद नहीं है और कीमतों में कमी इसी तरह जारी रह सकती है. कच्चे तेल की कीमतों में कमी का एक कारण रूस के कच्चे तेल पर G-7 देशों द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंध भी हैं. इसके अलावा अमेरिका ने वेनेजुएला में क्रूड उत्पादन को मंजूरी दी है जो अब शेवरॉन कार्प क्रूड का प्रॉडक्शन करेगा. इससे भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में सप्लाई बढ़ेगी और कच्चे तेल की कीमतों पर दबाव पड़ेगा.
कब तक घटेंगे पेट्रोल-डीजल के दाम? पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी का सटीक अंदाजा तो लगाना मुश्किल है लेकिन इतना जरूर है कि अगर अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में तेल मार्केटिंग कंपनियां अपने नुकसान को पूरा कर लेती हैं और जनवरी-मार्च तिमाही में भी कच्चे तेल की कीमतों में कमी रहती है तो फिर मुमकिन है ये अपनी गुंजाइश के कुछ हिस्से को ग्राहकों तक पहुंचा सकती हैं. लेकिन यहां पर भी ये देखना होगा कि अगर दाम फिर से बढ़ने लगे तब तेल कंपनियां ऐसा कोई फैसला नहीं करेंगी. वैसे भी मॉर्गन स्टेनली के एनालिस्ट्स का अनुमान है कि 2023 में कच्चे तेल की कीमतें 110 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर सकती हैं. यानी मौजूदा स्तर से 33 फीसदी की तेजी इनमें आ सकती हैं. हालांकि ये लेवल 2022 के 127 डॉलर प्रति बैरल के उच्चतम स्तर से कम रहेगा. ऐसे हालात में तेल मार्केटिंग कंपनियां किस तरह का रुख अपनाएंगी ये देखना दिलचस्प होगा.
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