आसान नहीं अतुल गर्ग के लिए वीके सिंह की विरासत संभालना, जिला गाजियाबाद की सियासी कहानी
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बीते दो दशकों के चार लोकसभा चुनावों में राजनाथ सिंह से लेकर वीके सिंह तक बीजेपी के उम्मीदवारों को गाजियाबाद से प्रचंड जीत मिली है. बीते चार चुनावों में बीजेपी ने इस सीट से राजपूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा है क्योंकि इस क्षेत्र में इस समुदाय की संख्या बहुत अधिक है. हालांकि, इस बार पार्टी ने जातिगण समीकरण को नजरअंदाज कर बनिया समुदाय के उम्मीदवार पर दांव चला है.
बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनाव में वीके सिंह के बजाए अतुल कुमार गर्ग पर दांव चला है. उन्हें गाजियाबाद लोकसभा सीट से टिकट दिया गया है. लेकिन इस सीट से विजय पताका फहराना गर्ग के लिए टेढ़ी खीर होगा.
गाजियाबाद से विधायक अतुल कुमार गर्ग के सामने सिर्फ एक चुनौती नहीं बल्कि चुनौतियों का पहाड़ है. उनके सामने जातीय समीकरण से लेकर पार्टी के नेताओं का विरोध और स्थानीय लोगों की नाराजगी जैसी कई मुसीबतें हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब गर्ग और उनके बेटे को स्थानीय लोगों का विरोध झेलना पड़ा है. हालांकि, गाजियाबाद सीट पर जीत हमेशा से बीजेपी के लिए आसान रही है. लेकिन जीत की ये राह गर्ग के लिए आसान नहीं होगी.
अतुल गर्ग के सामने चुनावी मैदान में कांग्रेस की उम्मीदवार डॉली शर्मा हैं. गाजियाबाद को डॉली का गढ़ माना जाता है. पिछले लोकसभा चुनाव में डॉली इस सीट से तीसरे पायदान पर रही थीं. वो उनका पहला संसदीय चुनाव था. लेकिन इस बार उन्हें गठबंधन के वोटों का फायदा मिल सकता है.
बीते दो दशकों के चार लोकसभा चुनावों में राजनाथ सिंह से लेकर वीके सिंह तक बीजेपी के उम्मीदवारों को गाजियाबाद से प्रचंड जीत मिली है. बीते चार चुनावों में बीजेपी ने इस सीट से राजपूत उम्मीदवार को मैदान में उतारा है क्योंकि इस क्षेत्र में इस समुदाय की संख्या बहुत अधिक है. हालांकि, इस बार पार्टी ने जातिगण समीकरण को नजरअंदाज कर बनिया समुदाय के उम्मीदवार पर दांव चला है.
अतुल गर्ग करोड़पति शख्स हैं जिन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की है. लेकिन उन्हें वीके सिंह के वफादारों से नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. इसके साथ ही उन्हें राजपूत समुदाय से लेकर पार्टी में उनके विरोधियों तक का सामना करना पड़ सकता है.
गाजियाबाद में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद और धौलाना हैं. यहां के शहरी इलाकों में ब्राह्मण आबादी ज्यादा है. यहां के ब्राह्मण समुदायों को खुश करने के लिए बीजेपी विधायक सुशील कुमार शर्मा को कैबिनेट में जगह दी गई थी. लेकिन राजपूत वोटर्स पर पूरे पश्चिमी यूपी में कोई खास ध्यान नहीं दिया गया. इसी का नतीजा है कि यहां राजपूत समुदाय के किसी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया गया.
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