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अरविंद केजरीवाल को अगर राष्ट्रीय राजनीति करनी है, तो राज्यसभा जाने से परहेज क्यों?
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अगर केजरीवाल राज्यसभा जाना चाहते हैं तो किसी को क्या दिक्कत हो सकती है? अगर नहीं ही जाना है तो बात और है, ये भी तो हो सकता है कि ये सब मनीष सिसोदिया या किसी और के लिए हो रहा हो.
अरविंद केजरीवाल के राजनीति में आने के बाद से ये बेहद मुश्किल दौर है. लेकिन, ऐसा भी नहीं कि उनके कामकाज पर बहुत फर्क पड़ने वाला है.
जैसे आम आदमी पार्टी का काम वो पहले देखा करते थे, आज भी वैसे ही देख सकते हैं. जब दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे तब भी, और आतिशी को बना दिया तब भी, अरविंद केजरीवाल के वर्कलोड पर कोई खास फर्क तो पड़ा नहीं.
जो काम वो मुख्यमंत्री रहते हुए करते थे, आतिशी के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी वो वैसे ही करते रहे. क्योंकि, पहले भी तो आतिशी वाली भूमिका में मनीष सिसोदिया होते ही थे, बस कुछ व्यावहारिक बाधाएं खड़ी हो जाती थीं, वो भी तकनीकी वजहों से - क्योंकि, वो तो जेल से भी वैसे ही सरकार चला रहे थे. आम आदमी पार्टी का दावा तो ऐसा ही था.
सबसे बड़ा फर्क यही पड़ा है कि अरविंद केजरीवाल के पास कोई संवैधानिक पद नहीं बचा है, और वो विधानसभा सदस्य भी नहीं रह गये हैं. वरना, जैसे पहले बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते थे, अब भी बड़े शौक से कर सकते हैं - और ये हुनर उनको आता भी अच्छे से है.
अरविंद केजरीवाल फिलहाल सीन से गायब हैं, ऐसा दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में महसूस किया जा रहा है. क्योंकि, मोर्चे पर तो हर तरफ आतिशी ही नजर आ रही हैं - देखकर तो यही लग रहा है कि दिल्ली का मोर्चा आतिशी के हवाले कर दिया गया है, और वो अच्छे से संभाल भी रही हैं.
सामने भले न नजर आयें, लेकिन चर्चा में अरविंद केजरीवाल तो हैं ही, लेकिन वो भी दिल्ली नहीं बल्कि पंजाब की राजनीति को लेकर.
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