अमीर नहीं, भुखमरी से जूझते अफ्रीकी देशों में दिख रहे सबसे ज्यादा शरणार्थी, 'ये' वजह देते हुए चीन ने बंद कर रखे हैं दरवाजे
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बीते सालों में कई देश आंतरिक कलह का शिकार हुए, जबकि कई देश पड़ोसियों से लड़-भिड़ रहे हैं. इस बीच जान बचाने के लिए वहां के नागरिक दूसरी जगहों पर शरण लेने लगे. अधिकतर लोग अपने पड़ोसी मुल्क जाते हैं, जबकि कुछ लोग उन जगहों पर जाना चुनते हैं, जहां पहले से उनकी नस्ल या समुदाय के लोग बसे हों. हालांकि जरूरी नहीं कि सब उन्हें लेकर वेलकमिंग हो.
थोड़े दिनों पहले ब्रिटेन से एक चौंकानेवाली खबर आई थी. वहां के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने शरणार्थियों को रवांडा 'डिपोर्ट' कराने की बात कही. असल में अस्थिर अरब मुल्कों से काफी सारे शरणार्थी ब्रिटेन पहुंचे. कोविड के दौरान संख्या में बढ़त हुई. अकेले साल 2022 में ही 45 हजार से ज्यादा लोग पानी के रास्ते ब्रिटेन पहुंचे. इनमें से ज्यादातर लोग अफगानिस्तान, ईरान, इराक और सीरिया से थे.
क्या बदला ब्रिटेन में और क्यों? इस बढ़ती आबादी से ब्रिटेन पर दबाव बढ़ सकता है. यही देखते हुए पीएम सुनक ने रवांडा से एक करार कर लिया. इसके तहत अवैध ढंग से ब्रिटेन पहुंचे लोगों को रवांडा भेज दिया जाएगा, जहां स्थानीय सरकार उनके रहने-खाने का इंतजाम करेगी. इसके बदले में यूके की सरकार रवांडा प्रशासन को तय रकम देगी.
अफ्रीकी देश हो सकता है और खस्ताहाल लगभग 5 सालों के लिए हुए इस एग्रीमेंट को यूके, अपने और रवांडा दोनों के लिए फायदेमंद कह रहा है, जबकि एक्सपर्ट्स इसे दूसरी नजर से देखते हैं. उनका तर्क है कि भुखमरी और लड़ाइयों से जूझते रवांडा में बाहरी लोग आएं तो कलह और बढ़ेगी. साथ ही साथ रवांडा पर बोझ भी पड़ेगा. ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था का कहना है कि शरणार्थियों का ये असमान बंटवारा काफी मुसीबतें ला सकता है.
चलिए, इस बात को जरा घरेलू ढंग से समझें किसी घर में 4 कमरे हैं, जिनमें तय सदस्य रहते हैं. मेहमानों के आने पर अगर हर कमरे में बराबर के मेहमान भेज दिए जाएं तो कोई दिक्कत नहीं होगी. वहीं अगर एक कमरे में सारे के सारे मेहमान भर दिए जाएं तो बाकी कमरे तो खाली रहेंगे, जबकि एक में उठने-बैठने की जगह तक बाकी नहीं रहेगी. ऐसे में रूम में रहते स्थाई सदस्य थोड़ा परेशान हो सकते हैं और गेस्ट को लेकर उनका रवैया भी बदल सकता है. यही बात शरणार्थियों के मामले में भी लागू होती है.
रिफ्यूजियों के खिलाफ बढ़ा असंतोष उदार माने जाते देशों में ज्यादा से ज्यादा रिफ्यूजी जाने लगें तो वहां बोझ भी बढ़ेगा और विदेशियों के लिए गुस्सा भी. इस गुस्से के कई उदाहरण हाल के समय में दिखने लगे हैं. पहले शरणार्थियों को आसानी से स्वीकार करने वाले लोग अब उन्हें लेकर सख्त होने लगे. रिफ्यूजी को शक की नजरों से देखा जाने लगा और उन्हें अपने देश वापस जाने की कमेंट्स भी मिलने लगीं हैं.
कहां, कितने हैं शरणार्थी अमेरिकी विश्लेषक कंपनी गैलप ने खंगालना चाहा कि देशों के बीच शरणार्थियों का बंटवारा किस तरह का है. इसके लिए कुल 138 देशों में सर्वे हुआ. नतीजे अनुमान से काफी अलग रहे. गैलप माइग्रेंट एक्सेप्टेंस इंडेक्स 2022 के मुताबिक पहले दो नंबर पर आइसलैंड और न्यूजीलैंड हैं. ये सबसे ज्यादा शरणार्थियों को स्वीकार करते हैं. लेकिन इसके बाद रवांडा, सिएरा लिओन और माली का नंबर है. ये तीनों ही अफ्रीका के गरीब देश हैं.
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