
अक्षय कुमार बोले- सिर्फ मैंने ही देशभक्ति वाली फिल्में बनाने का ठेका ले रखा है, ऐसा नहीं है
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अक्षय कुमार इस समय अपनी आगामी फिल्म 'पृथ्वीराज' के प्रमोशन्स में व्यस्त चल रहे हैं. एक इवेंट के दौरान एक्टर ने कई मुद्दों पर अपनी राय रखी. साथ ही उन्होंने साउथ और नॉर्थ फिल्म इंडस्ट्री को लेकर भी कहा.
बॉलीवुड के खिलाड़ी कुमार इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म पृथ्वीराज के प्रमोशन में व्यस्त हैं. इस मुलाकात में अक्षय अपना शूटिंग एक्स्पीरियंस समेत फिल्म से जुड़े विवाद और कई विषयों पर बातचीत करते हैं.
इतिहास से इतर इस फिल्म में हम पृथ्वीराज जी के बारे में और क्या जान पाएंगे? जब डॉक्टर साहब (डायरेक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी) ने मुझसे आकर कहा कि वे फिल्म बनाना चाहते हैं. सबसे पहला सवाल जो मेरे जेहन में था कि हमने अपने इतिहास के किताबों में जो कुछ भी देखा और सुना था, उसके अनुसार मैं पृथ्वीराज चौहान की इमेज से कहीं भी मेल नहीं खाता था. फिर मुझे डॉक्टर साहब ने यह बताया कि पृथ्वीराज चौहान की असल तस्वीर आजतक किसी के पास नहीं है. किसी की कल्पना के आधार पर उनकी स्केच बनाई गई है. पृथ्वीराज तो 36 साल की उम्र में ही गुजर गए थे. उन्होंने करीबन 18 जंग लड़ा है और एक-एक लड़ाई 20 से 25 दिनों की होती थी. एक दिन में 10 से लेकर 11 घंटों तक लड़ते थे, तो इतिहास के किताबों में दिखाया जाने वाला पृथ्वीराज चौहान तो नहीं हो सकता है. जिस प्रकार का उनका बॉडी ऑफ वर्क रहा, उसके हिसाब से तो उन्हें एथलीट होना चाहिए था. डायरेक्टर की कल्पना के अनुसार वो एथलीट ही थें. वो जो पहनते थे, 20 से 25 किलो का वजन होता होगा, तलवार भी 20 किलो की रही होगी. यह तो कोई एथलीट ही कर सकता है. हालांकि मैं यहां किसी को चैलेंज नहीं कर रहा लेकिन यह लोगों के नजरिये की बात है.
आपको लगता है कि हमारा इतिहास टेक्स्टबुक कहीं न कहीं हमें कम जानकारी देता है. उसमें बदलाव की जरूरत है? मैंने टॉयलेट एक प्रेमकथा और पैडमैन की थी, जिसे सरकार स्कूलों में बच्चों को दिखाती है. मैं खुद को खुशनसीब मानता हूं कि मेरी फिल्म मेसेज देने काम करती है. मैं उसी हिसाब से कह रहा था कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान जो बनी है, लोगों को अपनी हिस्ट्री के बारे में जानना जरूरी है. हमें अपने कल्चर के बारे में पता होना चाहिए. हमें उनकी सोच के बारे में पढ़ना चाहिए, उनकी सोच तो इतनी आगे थी, हम आज भी कहीं पीछे ही हैं. यह बहुत दुख ही बात है. देखिए मैं इतिहास की किताबें बदलनी चाहिए या नहीं, मैं इस डिबेट में नहीं पड़ता हूं. अब हिस्ट्री बुक बदलनी चाहिए या नहीं, ये फैसला लेने वाला मैं कौन होता हूं. मेरी औकात नहीं है.
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फिल्म का शूटिंग अनुभव कैसा रहा है? मैंने अपने पूरे करियर में किसी भी फिल्म का ऐसा क्लाइमैक्स नहीं शूट किया है. इसमें मेटल पहनकर जो फाइट सीन्स किया है, वो काफी चैलेंजिंग था. इस तरह की फाइट्स भी कभी नहीं की थी. मैं अगर इस किरदार के बारे में बात करूं, तो मेरी मां मुझे बचपन में हिस्ट्री पढ़ाया करती थी. उस वक्त मैंने पृथ्वीराज चौहान जी के बारे में एक पैराग्राफ रट्टा मारकर पढ़ाई थी ताकि एग्जाम के वक्त फील इन द ब्लैंक्स में लिख सकूं कि उनका जन्म इस सदी में हुआ और मृत्यु ऐसे हुआ. मैंने कभी नहीं सोचा था कि जो इतिहास को पढ़ा है, उसे स्क्रीन पर निभाने का मौका मिलेगा. मैं काफी खुश था. काश मैं मां को पूरी फिल्म दिखा पाता.
शूटिंग के दौरान इस किरदार में अक्षय कुमार के हावी होने का डर था? इतना नहीं सोचता हूं मैं, अब एक किरदार खेलने जा रहा हूं. ये सोचने लगा, तो फिर काम कैसे संभव हो पाएगा.

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