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World Refugee Day: 'बेमुल्क' लोगों की बस्तियां... जहां सुबह की कोई उम्मीद नहीं
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आज वर्ल्ड रिफ्यूजी डे है. शरणार्थियों के लिए यूएन की अगुवाई में दुनियाभर में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. लेकिन भारत हो या दुनिया का कोई और हिस्सा शरणार्थी शिविरों में रह रहे करोड़ों लोगों के हालात कोरोना महामारी ने और भी खराब कर दिए हैं.
बशीर बद्र का शेर है-''उड़ने दो परिंदों को अभी शोख हवा में, फिर लौट के बचपन के जमाने नहीं आते'' ...जब आसमान में उड़ते परिंदे भी तिनका-तिनका बुनकर अपना घोंसला, एक ठिकाना बनाना चाहते हैं तो इंसान तो एक सामाजिक प्राणी है. एक आशियाना, रोजमर्रा की गृहस्थी के सामान और एक राष्ट्रीय पहचान अपने लिए कौन नहीं चाहता... लेकिन सबकी किस्मत एक जैसी हो जरूरी तो नहीं. हम बात कर रहे हैं दुनिया के उन करोड़ों शरणार्थियों यानी रिफ्यूजियों की जो अपने घरों, अपने मुल्कों से ना चाहते हुए भी दरबदर हैं. दुनिया में ऐसी आबादी की तादाद करोड़ों में हैं... लेकिन न इनके पास कोई अपना मुल्क है, न कोई अपनी पहचान और न ही कोई स्थायी ठिकाना.More Related News
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आम आदमी पार्टी हाल में संपन्न दिल्ली विधानसभा चुनाव में 62 सीटों से नीचे गिरकर 22 सीटों पर आ गई. पार्टी के बड़े-बड़े धुरंधर जिनमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज, सत्येंद्र जैन, सोमनाथ भारती शामिल हैं, चुनाव हार गए. लेकिन कालकाजी में काफी कड़े मुकाबले में आतिशी ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को हराने में सफलता पाई.