
Uttarakhand Assembly Elections 2022: उत्तराखंड की राजनीति के 4 बड़े मिथक, जिसने हारी ये सीट सूबे में बनती है उसकी सरकार
ABP News
Uttarakhand Assembly Elections: उत्तराखंड की हांड कंपा देने वाली सर्दी के बावजूद सूबे की गलियों में चुनावी अलाव जला हुआ है. लेकिन राज्य की कुछ सीट ऐसी हैं, जिन्हें यहां की राजनीति का बड़ा मिथक माना जाता है.
राजनीति में हर दांव बहुत सोच-समझकर चला जाता है. कई बार ये मास्टरस्ट्रोक साबित होते हैं तो कई बार तीर खाली चला जाता है. 5 राज्यों में 'चुनावी जंग' का एलान हो चुका है. टिकट बंट चुके हैं, उम्मीदवार उतारे जा चुके हैं. उत्तराखंड की हांड कंपा देने वाली सर्दी के बावजूद सूबे की गलियों में चुनावी अलाव जला हुआ है. लेकिन राज्य की कुछ सीट ऐसी हैं, जिन्हें यहां की राजनीति का बड़ा मिथक माना जाता है. ये मिथक दशकों से चले आ रहे हैं और हर पार्टी इन्हें बहुत ज्यादा गंभीरता से लेती है. आइए आपको रूबरू कराते हैं उत्तराखंड की राजनीति के उन चार बड़े मिथकों से, जिन्होंने बरसों से यहां की सियासत में खूंटा गाड़ा हुआ है.
ये मिथक साल 1952 से राज्य की राजनीति में बना हुआ है. तब निर्दलीय प्रत्याशी जयेंद्र जीते. जब वे कांग्रेस में शामिल हुए तो सरकार कांग्रेस की बनी. इमरजेंसी के दौर में जनता पार्टी जीती और सरकार बना ली. 9 नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड बना, तब भी यह मिथक नहीं टूटा. इस बार आम आदमी पार्टी ने अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है.