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Ujjain: कुख्यात हिस्ट्रीशीटर रहे बेटे ने अपनी जांघ की चमड़ी से मां के लिए बनवाई चप्पलें, बोला- रामायण से सीख मिली
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Ujjain News: रौनक गुर्जर कुख्यात हिस्ट्रीशीटर रह चुका है. एक केस में आरोपी बने रौनक के पैर में पुलिस ने एक बार भी गोली मार दी थी. लेकिन अब रौनक नियमित रामायण का पाठ करता है और धार्मिक गतिविधियों में लीन रहने की कोशिश करता है.
रामायण के रचयिता वाल्मीकि के महर्षि बनने से पहले की कथा हिंदू धर्म ग्रंथों में सुनाई जाती है. वाल्मिकी का असली नाम पहले रत्नाकर था. रत्नाकर अपने परिवार के पालन पोषण के लिए खूंखार डाकू बन थे. लेकिन एक दिन नारद जी के समझाने पर डाकू रत्नाकर की जिंदगी बदल गई और भगवान भक्ति में लीन हो जाने के बाद उनको पूजनीय महर्षि और आदिकवि वाल्मीकि के नाम से जाना गया. कुछ यह कहानी इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन से भी एक अपराधी के हृदय परिवर्तन का मामला सामने आया है. महाकाल की नगरी में एक हिस्ट्रीशीटर रहे अपराधी ने अपनी जांघ की चमड़ी से चरण पादुकाएं बनवाकर अपनी मां को पहना दीं.
शहर के ढांचा भवन इलाके में रहने वाला रौनक गुर्जर कुख्यात हिस्ट्रीशीटर रह चुका है. एक केस में आरोपी बने रौनक के पैर में पुलिस ने एक बार भी गोली मार दी थी. लेकिन अब रौनक नियमित रामायण का पाठ करता है और धार्मिक गतिविधियों में लीन रहने की कोशिश करता है.
राम भगवान से मिली प्रेरणा
रौनक को रामायण से मां की सेवा की प्रेरणा मिली. रौनक ने बताया, रामायण का पाठ करता हूं और प्रभु के चरित्र से काफी प्रभावित हूं और भगवान राम ने ही कहा है कि अपनी मां के लिए चमड़े से खडाऊं भी बनवा दें तो कम है. बस, इसी बात को लेकर मेरे मन मे ख्याल आया और मां के लिए अपने चमड़े से मैंने चरण पादुका बनवाईं और मां को भेंट कीं.
अस्पताल में निकलवाई जांघ की चमड़ी
खास बात यह है कि चरण पादुकाएं यानी चप्पलें रबर, प्लास्टिक या किसी अन्य जीव के चमड़े से नहीं बनवाई गईं, बल्कि खुद रौनक ने अपने खाल निकलवाकर बनवाई थीं. रौनक ने अस्पताल में सर्जरी करवाकर अपनी जांघ की चमड़ी निकलवाने की प्रक्रिया गुपचुप तरीके से करवाई और परिवार में किसी को कुछ नहीं बताया. इसके बाद चमड़ी को लेकर मोची के पास पहुंचा. जहां मोची ने अपनी कुशलता का परिचय देते हुए पहली बार किसी इंसान की चमड़ी से चप्पल बनाईं.
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