UAPA क़ानून: चार साल की जेल, लेकिन हबीब को नहीं मालूम उन्हें गिरफ्तार क्यों किया?
BBC
बेंगलुरु में गोलीबारी की घटना के सिलसिले में वहां से सैकड़ों मील दूर अगरतला के ऑटो ड्राइवर को पुलिस ने गिरफ़्तार किया. जानिए उनके जेल जाने और रिहा होने की कहानी.
चार साल जेल में बिताने के बाद त्रिपुरा के अगरतला के एक ऑटो ड्राइवर इस बात पर आज भी इस बात से हैरान हैं कि उनपर आतंकवाद से जुड़ा आरोप क्यों लगा और वह भी जहां घटना हुई वहां से सैकड़ों मील दूर बेंगलुरु में. मोहम्मद हबीब उर्फ़ हबीब मियां ने बीबीसी को बताया, "अदालत से बरी होने के बाद मैं घर तो लौट गया लेकिन आज भी मैं ये नहीं समझ पाया हूं कि मुझे पुलिस ने पकड़ कर जेल में क्यों डाला." हबीब को पुलिस ने अगरतला से गिरफ्तार किया था. उन्हें बेंगलुरु में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस के जेएन टाटा ऑडिटोरियम में दिसंबर, 2005 में हुई गोलीबारी के 12 साल के बाद पकड़ा गया था. इस गोलीबारी में आईआईटी दिल्ली के प्रोफ़ेसर एमसी पुरी की मौत हो गई थी जबकि चार अन्य वैज्ञानिक और रिसर्चर घायल हुए थे. दिलचस्प बात ये है कि हबीब को बेंगलुरु की विशेष एनआईए कोर्ट ने जिस दिन बरी किया उसके एक दिन बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने यूएपीए क़ानून के तहत गिरफ़्तार किए गए तीन युवाओं को ज़मानत दी. दिल्ली दंगों में षड्यंत्र के आरोपों के कारण पिंजरा तोड़ की कार्यकर्ता नताशा नरवाल और देवांगना कालिता के अलावा आसिफ़ इक़बाल तन्हा को भी जेल से रिहाई मिली थी.More Related News