Shani Dev : न्याय के देवता शनिदेव को देर नहीं लगती है राजा को रंक बनाने में. कर्म के आधार पर करते हैं न्याय
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Shani Dev : शनि देव को कर्मफलदाता भी कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्र में शनि को ग्रहों में दंडाधिकारी कहा गया है. आइए जानते हैं शनि देव के बारे में-
Shani Dev : जन्मपत्री शनि भाव विशेष में स्थित होकर हमें हमारे कर्मों के हिसाब से फल प्रदान करते हैं जैसे- यदि केंद्र में शनि देव विराजमान होते हैं तो हम अपने व्यक्तियों का पालन पूर्व जन्म में नहीं कर पाये उसकी सजा रूप में इस जन्म में ज्यादा जिम्मेदारियों का बोझ उठाना पड़ेगा. यह निश्चित है .
भाग्य भाव पर शनि स्थित होने से किसी भी प्रकार की योग साधना जातक अवश्य करेगा, उसमें एक अनोखी शक्ति देखने को मिलेगी. शनि भगवान सूर्य तथा छाया सुवर्णा के पुत्र हैं. यह पापी ग्रह माने जाते हैं, इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है वह उनकी पत्नी के श्राप के कारण है. ब्रह्मपुराण में इनकी कथा इस प्रकार आयी है- शनि देव भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे. वह कृष्ण की भक्ति में लीन रहा करते थे. वयस्क होने पर इनका विवाह चित्ररथ की कन्या से हुआ, उनकी पत्नी सती- साध्वी और परम तेजस्विनी थी. एक बार शनि भगवान श्रीकृष्ण की आराधना में मग्न थे. रात्रि में उनकी पत्नी अपने पति का इंतजार कर रही थी. जब मध्य रात्रि बीतने को हुआ तो उनकी पत्नी उनके पास आकर शनि देव को बुलाने लगी. शनि देव अपनी आराधना में विघ्न डालने पर बहुत क्रोधित हुए क्योंकि वह भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे. शनिदेव के क्रोध से पत्नी बहुत आहत हुई और उन्होंने शनिदेव को श्राप दे डाला कि आप जिसको भी तिरछी नजर से देखेंगे वह नष्ट हो जायेगा. बाद में भूल का पश्चाताप हुआ , किंतु श्राप के प्रतिकार की शक्ति न थी. तभी से शनि देवता सिर नीचा करके रहने लगे क्योंकि वह नहीं चाहते कि किसी का अनिष्ट हो.