
Ram Mandir Ayodhya News: रामलला की पहली झलक दिखी... जानिए कैसे दिखते हैं तुलसी-सूर और कबीर से लेकर भजन-कीर्तन के राम
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अपने रामलला को देखने को आतुर श्रद्धालुओं को थोड़ा चैन तो शुक्रवार को ही आ गया, जब बालरूप धरे रामलला की स्यामल मनोहर छवि सामने आ गई. इस प्रतिमा के देखते ही वह सारे रूप, वह सारी व्याख्याएं एक-एक कर साकार सी होने लगीं, जिसका वर्णन संतों-कवियों ने अपने-अपने राम की छवि को गढ़ने में किया है.
रामलला आ रहे हैं. आरती की थाल लगी हुई है. फूलों से गलियां-गलियां, द्वार-द्वार सजा लिए गए हैं. मंदिर भी सजकर तैयार है और गर्भगृह समेत देश-विदेश के अनगिनत श्रद्धालुओं की आंखें उस पल का साक्षी बनने को आतुर हैं, जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी और फिर जन-जन के राम शताब्दियों बाद अपने मंदिर में बस जाएंगे.
भक्तों-श्रद्धालुओं के सीने में तो उनका बसेरा पहले से है. 'श्रीराम-जानकी बैठे हैं मेरे सीने में' इस भजन को गाते हुए श्रद्धालुओं ने कई बार अपने मन-मंदिर में राम-जानकी के बसने की गवाही दी है, लेकिन प्रतीक्षा उस पल की भी है, जब श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में विराजे रामलला भक्तों को दर्शन देंगे.
शुक्रवार को सामने आई रामलला की तस्वीर अपने रामलला को देखने को आतुर श्रद्धालुओं को थोड़ा चैन तो शुक्रवार को ही आ गया, जब बालरूप धरे रामलला की स्यामल मनोहर छवि सामने आ गई. हालांकि यह गर्भगृह में स्थापना के बाद की तस्वीर नहीं है. प्रतिमा के निर्माण के समय की ही है, लेकिन इस प्रतिमा के देखते ही वह सारे रूप, वह सारी व्याख्याएं एक-एक कर साकार सी होने लगीं, जिसका वर्णन संतों-कवियों ने अपने-अपने राम की छवि को गढ़ने में किया है.
रावण से भी जताते हैं स्नेह, ऐसे दीनबंधु हैं राम किसी ने रामलला को दशरथ के आंगन में खेलते नन्हें बालक के रूप में देखा. किसी ने उन्हें धनुर्धारी कहा. किसी को वही राम करोड़ों कामदेव को भी पराजित करने वाले संसार में सबसे सुंदर नजर आए, किसी को पुरुषोत्तम लगे, किसी को कमल के समान कोमल तो किसी को वज्र से भी कठोर. किसी ने उन्हें दीनबंधु कहा तो किसी ने उन्हें इतना दयालु कहा कि वह अपने परम शत्रु रावण पर भी स्नेह जताने से पीछे नहीं हटे. तुलसीदास ने तो विनय पत्रिका में यह भी लिख दिया कि 'करुणानिधान सुजान सील, सनेहु जानत रावरो'
कवियों के काव्य में रामलला अयोध्या राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और उनकी पहली झलक सामने आने से उठी चर्चाओं के बीच, एक बार फिर उन सभी संज्ञाओं और उपमाओं पर नजर डाल लेना जरूरी हो जाता है,जो आज तक श्रीराम के स्वरूप, गुण उनकी प्रकृति, चरित्र और आचार-विचार के वर्णन के लिए प्रयोग की जाती रही हैं. भारत में भक्तिकाल के कवियों का साहित्य में विशेष स्थान रहा है और साहित्य में भक्तिकाल के दौरान काव्य की दो धाराएं बही हैं. 1. सगुण काव्य धारा 2. निर्गुण काव्य धारा

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