
MSP: न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) क्या है और क्यों चाहते हैं किसान इसकी गारंटी
BBC
मोदी सरकार ने वादे के मुताबिक तीन खेती क़ानून वापिस ले लिए हैं लेकिन किसान अब भी आंदोलन जारी रख रहे हैं. उनकी मांग है कि MSP की गारंटी देने का कानून बनाया जाए. पढ़िए इस मांग से जुड़े सवाल और उनके जवाब
मोदी सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का बिल दोनों सदनों में पारित कर दिया है, लेकिन पिछले एक साल से धरने पर बैठे किसान इन क़ानूनों के वापसी के साथ-साथ, लगातार एक मांग करते आएं हैं कि उन्हें उनकी फसलों पर एमएसपी की गारंटी दी जाए.
पहला सवाल कि एमएसपी क्या है और इसकी क्या ज़रूरत है?
किसानों के हित के लिए एमएसपी की व्यवस्था सालों से चल रही है. केंद्र सरकार फसलों की एक न्यूनतम कीमत तय करती है. इसे ही एमएसपी कहते हैं. मान लीजिए अगर कभी फसलों की क़ीमत बाज़ार के हिसाब से गिर भी जाती है, तब भी केंद्र सरकार इस एमएसपी पर ही किसानों से फसल ख़रीदती है ताकि किसानों को नुक़सान से बचाया जा सके. 60 के दशक में सरकार ने अन्न की कमी से बचाने के लिए सबसे पहले गेहूं पर एमएसपी शुरू की ताकि सरकार किसानों से गेहूं खरीद कर अपनी पीडीएस योजना के तहत ग़रीबों को बांट सके.
एमएसपी को लेकर किसानों में डर क्या है?
वैसे तो एमएसपी तय होती है इस आधार पर कि किसानों को उनकी लागत का 50 फीसद रिटर्न मिल जाए लेकिन असल में ऐसा होता नहीं. कई जगह तो किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर भी फसल बेचनी पड़ती है. और जब इसको लेकर कोई क़ानून ही नहीं है तो फिर किस अदालत में जाकर वह अपना हक़ मांगेंगे. सरकार चाहे तो एमएसपी कभी भी रोक भी सकती है क्योंकि ये सिर्फ एक नीति है कानून नहीं. और यही डर किसानों को है.