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Mahabharat : युद्ध न लड़कर भी कौरव-पांडवों के साथ अनूठे अंदाज में रहे उडुपी
ABP News
कौरव-पांडवों के महासंग्राम से पहले राजा उडुपी ने कहा, मैं युद्ध में रहकर भी शस्त्र नहीं उठाऊंगा, लेकिन दोनों पक्षों की मदद के लिए हर समय रहूंगा. मैं सभी के भोजन-पानी और विश्राम की व्यवस्था करूंगा.
Mahabharat: पांडवों की संधि की शर्त ठुकराने और शांतिदूत बनकर आए श्रीकृष्ण को कौरवों की ओर से लौटाने के साथ तय हो गया कि युद्ध बिना कोई निर्णय नहीं होने वाला है, लेकिन जब महाभारत लड़ा जाने वाला था तो सभी धर्म-अधर्म की बातें करने में व्यस्त थे. सभी को लगता था कि यह धर्म की अधर्म पर विजय होगी और मानवता खुद स्थापित हो जाएगी. मगर उस समय भी कोई ऐसा था, जो न धर्म की तरफ से लड़ा, न अधर्म का साथ दिया, उसने सिर्फ मानवता का धर्म निभाया और यह कोई और नहीं बल्कि महाराज उडुपी थे, जिन्होंने पूरे युद्धकाल में न कोई अस्त्र उठाया, न किसी का हित किया. पूरे युद्धकाल में 18 दिन तक रोज उन्होंने लाखों योद्धाओं के लिए भोजन की व्यवस्था की. महाभारत युद्ध शुरू होने पर सभी राजाओं ने युद्ध में भाग लिया. इसे मानव इतिहास का पृथ्वी पर लड़ा गया पहला विश्व युद्ध भी कहा जाता है, इसमें कुछ राजा पांडवों की तरफ से उतरे तो कुछ शासक कौरवों के लिए युद्ध करने आए. मगर राजा उडुपी ने धर्म और अधर्म के बीच छिड़ने वाले युद्ध में भाग ही नहीं लिया. उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर कहा कि इस युद्ध में जो भी योद्धा लड़ेंगे, वे उनके लिए भोजन, पानी, विश्राम आदि की व्यवस्था करेंग.More Related News