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Mahabharat : अर्जुन ने भाई के यज्ञ के लिए बेटे के हाथों गंवाई थी जान
ABP News
पौराणिक कथाओं के जरिए अधिकांश लोगों को पता होगा कि अर्जुन की मृत्यु स्वर्ग की यात्रा के दौरान हुई थी, लेकिन इसे पहले भी अर्जुन की एक बार मृत्यु हो चुकी थी, वह भी अपने बेटे के हाथों हुए वध के चलते.
Mahabharat : महाभारत युद्घ खत्म होने के बाद एक दिन महर्षि वेदव्यासजी और श्रीकृष्ण के सुझाव पर पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ करने का निर्णय लिया. मुहूर्त देखकर यज्ञ का शुभारंभ हुआ. अर्जुन को रक्षक बनाकर अश्व छोड़ा गया. यह घोड़ा जहां भी जाता, अर्जुन उसके पीछे जाते, इस दौरान अनेक राजाओं ने पांडवों की अधीनता स्वीकार कर ली तो कुछ ने मैत्रीपूर्ण संबंधों के चलते कर चुकाना स्वीकार कर लिया.महाभारत आश्वमेधिक पर्व के अनुगीता पर्व के अंतर्गत अध्याय 79 में वर्णित है कि किरात, मलेच्छ और यवन आदि देशों ने यज्ञ के घोड़े को रोका गया तो अर्जुन ने युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया. घोड़ा घूमते-घूमते एक दिन मणिपुर पहुंचा, जहां कि राजकुमारी चित्रांगदा अर्जुन की पत्नी थीं. दोनों के पुत्र का नाम बभ्रुवाहन था. इस समय बभ्रुवाहन ही मणिपुर का राजा था. जब बभ्रुवाहन को पिता के आने का समाचार मिला तो स्वागत के लिए वह नगर द्वार पर पहुंच गया. इस पर अर्जुन ने कहा कि मैं यज्ञ के घोड़े की रक्षा करता हुआ बभ्रुवाहन तुम्हारे राज्य में आया हूं, इसलिए मुझसे युद्ध करो, जिस समय अर्जुन ने यह बात कही, उसी समय नागकन्या उलूपी भी वहां आ गई. उलूपी भी अर्जुन की पत्नी थीं. उलूपी ने भी बभ्रुवाहन को अर्जुन से युद्ध करने को कहा.More Related News