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Lockdown को एक साल: एक श्रमिक ने बयां किया दर्द, 'काम है नहीं, तीन टाइम की जगह खा पा रहा एक टाइम खाना'
NDTV India
आप दिल्ली के किसी भी लेबर चौक चले जाएं तो आपको खाली बैठे मज़दूर दिख जाएंगे. कोई एक काम देने वाला आता है तो सब टूट पड़ते हैं. दरअसल लॉकडाउन से सबकी जेब पर असर हुआ है यही वजह है कि नए घर कम बन रहे हैं और इन मज़दूरों को काम नहीं मिल पा रहा.
Corona Pandemic: कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन (Lockdown) को एक साल होने को है. जिस मज़दूर वर्ग को लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ वो अब भी बेहद तक़लीफ़ में हैं. सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर बड़े शहरों से अपने गांव गए मज़दूर वापस तो आ गए हैं पर अब भी उनमें से ज्यादातर की जेब और पेट खाली ही है.बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर रेलवे स्टेशन पर मृत पड़ी अपनी मज़दूर मां को उठाने की कोशिश करते बच्चे की तस्वीर आप सबको याद होगी लेकिन सरकार शायद भूल चुकी है. 35 साल की अवरीना परवीन श्रमिक ट्रेन से सूरत से कटिहार जा रही थीं मगर बीच रास्ते में ही भूख और गर्मी से ट्रेन में ही उन्होंने दम तोड़ दिया था. इस बच्चे को तो एक NGO ने गोद ले लिया लेकिन घर जाते वक़्त दुर्घटना से भूख से मारे गए सैकड़ों मज़दूरों के परिवार अब भी ग़रीबी में जी रहे हैं. अवरीना परवीन कहती हैं, 'हमारे लिए किसी ने कुछ नहीं किया. नीतीश सरकार ने कुछ नहीं दिया.'More Related News