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kavad yatra : शिव को रावण ने विष ज्वाला से मुक्त कर शुरू की कावड़ यात्रा, जानें पुरी कथा
ABP News
श्रावण मास में कावड़ यात्रा का विशेष महत्व है. हर साल लाखों शिवभक्त पवित्र जल लेकर कई किमी पैदल चलते हुए महादेव के मंदिर और शिवालयों में चढ़ाते हैं.
kavad yatra : पौराणिक कथाओं के अनुसार कावड़ यात्रा शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शुरू की गई अध्यात्मिक परंपरा थी, मगर इसकी शुरुआत को लेकर कई किवदंतियां हैं. कुछ कथाओं के अनुसार इसे शुरू करने का श्रेय परशुराम मुनि को दिया जाता है तो कुछ जगह श्री राम को, लेकिन अधिकांश मानते हैं कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत राक्षसराज, लंकापति रावण ने की थी. पुराणों के अनुसार कांवड़ यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी मानी जाती है. वासुकी नाग के जरिए किए गए मंथन से निकला विष पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और उनका गला जलने लगा था. विष के गंभीर नकारात्मक प्रभावों ने शिवजी को असहज कर दिसा. अपने आराध्यदेव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके परमभक्त रावण ने बीणा उठाया। उसने कावड़ में जल भरकर पुरामहादेव स्थित शिवमंदिर में कई बरसों तक महादेव का जलाभिषेक किया, इसके चलते शिवजी जहर के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और उनके गले में हो रही जलन खत्म हो गई. यहीं से कावड़ यात्रा का आरंभ माना गया.More Related News