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Kasargod Murder Case: 97 गवाह, 215 दस्तावेज और 45 सबूतों की जांच... ऐसे बरी हो गए मदरसा टीचर के हत्या आरोपी RSS कार्यकर्ता
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कासरगोड के प्रधान सत्र न्यायालय के न्यायाधीश केके बालाकृष्णन ने मदरसा टीचर की हत्या के मामले में आरोपी अखिलेश, निधिन और अजेश को लंबी सुनवाई के बाद बरी कर दिया. तीनों आरोपी मदरसा टीचर के कत्ल की इस सनसनीखेज वारदात के बाद से ही जेल में बंद थे.
Madrasa Teacher Murder Case: केरल के कासरगोड की सेशन कोर्ट ने एक मदरसा टीचर की हत्या के आरोपी तीन आरएसएस कार्यकर्ताओं को बरी कर दिया. साल 2017 में जिले की एक मस्जिद के अंदर एक मदरसा शिक्षक की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में तीन आरएसएस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था. तीनों आरोपी केलुगुडे के रहने वाले हैं.
जेल में बंद थे तीनों आरोपी कासरगोड के प्रधान सत्र न्यायालय के न्यायाधीश केके बालाकृष्णन ने मदरसा टीचर की हत्या के मामले में आरोपी अखिलेश, निधिन और अजेश को लंबी सुनवाई के बाद बरी कर दिया. तीनों आरोपी मदरसा टीचर के कत्ल की इस सनसनीखेज वारदात के बाद से ही जेल में बंद थे.
कमरे में मिली थी खून से सनी लाश इस वारदात में चूरी के 34 वर्षीय मदरसा टीचर मोहम्मद रियास मौलवी को कातिलों ने अपना शिकार बनाया था. रियास मौलवी एक मुअज़्ज़िन भी थे, जो प्रार्थना करने के लिए इस्लामी आह्वान करता है. 20 मार्च 2017 को उनकी खून से सनी लाश मस्जिद में बने एक कमरे में मिली थी. पुलिस के मुताबिक, वहीं उनका कत्ल किया गया था.
गला काट कर किया गया था मौलवी का मर्डर पुलिस अधिकारियों ने बताया था कि चूरी की मुहयुद्दीन जामा मस्जिद के परिसर में घुसे एक गिरोह ने मदरसा टीचर का तेजधार हथियार से गला काट दिया था. जिसकी वजह उनकी दर्दनाक मौत हो गई थी.
आरोप साबित करने में नाकाम रहा अभियोजन पक्ष कासरगोड की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि आरोपियों की मुस्लिम समुदाय से किसी तरह की दुश्मनी थी. अदालत ने कहा कि इसके अलावा, अभियोजन पक्ष आरोपियों का आरएसएस के साथ किसी भी तरह का संबंध स्थापित करने में नाकाम रहा.
जांच अधिकारियों के तरीके पर शक सेशन कोर्ट ने कहा कि आरोपियों और अभियोजन पक्ष के गवाहों से जब्त किए गए फोन का विश्लेषण किया गया लेकिन कुछ भी उपयोगी नहीं मिला. उपरोक्त फोन की सामग्री और डेटा के संबंध में जांच करने में जांच अधिकारियों की विफलता जांच शुरू करने और नतीजे पर पहुंचने के तरीके पर गंभीर शक पैदा करती है. कोर्ट ऑर्डर में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष ने यह जानने का सर्वोत्तम अवसरों में से एक को बर्बाद कर दिया कि मृतक ने किसके साथ बातचीत की थी.
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