IPC Section 58: अपराधियों को निर्वासन की सजा दिए जाने से जुड़ी थी आईपीसी की धारा 58, हो गई थी निरस्त
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आईपीसी (IPC) की धारा 58 (Section 58) में 'निर्वासन की सजा पाए अपराधियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए' संबंधी प्रावधान किए गए थे. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 58 क्या कहती थी?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धाराओं में अपराध (Offence) और उनकी सजा (Punishment) के साथ-साथ कई शब्दों (words) और मामलों (cases) की कानूनी जानकारी (legal Information) भी दर्ज है. इसी तरह से आईपीसी (IPC) की धारा 58 (Section 58) में 'निर्वासन की सजा पाए अपराधियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए' संबंधी प्रावधान किए गए थे. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 58 क्या कहती थी?
आईपीसी की धारा 58 (IPC Section 58) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 58 (Section 58) में इस बात का उल्लेख मिलता था कि 'निर्वासन की सजा पाए अपराधियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए.' IPC की धारा 58 के अनुसार निर्वासन यानी देश निकाला (exile) से दण्डादिष्ट (sentenced) अपराधियों के साथ कैसा व्यवहार (Behaviour) किया जाए, जब तक वे निर्वासित न कर दिए जाएं. लेकिन दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 1955 (Code of Criminal Procedure (Amendment) Act 1955) की धारा 117 और अनुसूची द्वारा 1 जनवरी 1956 को इस सेक्शन को निरसित (repealed) कर दिया गया था.
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क्या होती है आईपीसी (IPC) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.
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