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IPC Section 30: जानिए, क्या है आईपीसी की धारा 30?
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आईपीसी (IPC) की धारा 30 (Section 30) में 'मूल्यवान प्रतिभूति' को परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 30 (Section 30) क्या बताती है?
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धाराएं अपराध (Crime) और उनकी सजा (Punishment) के साथ कानून (Law) से जुड़े प्रावधान (Provisions) बताती हैं. आईपीसी (IPC) की धारा 30 (Section 30) में 'मूल्यवान प्रतिभूति' को परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 30 (Section 30) क्या बताती है?
आईपीसी की धारा 30 (IPC Section 30) Indian Penal Code यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 30 (Section 30) के मुताबिक मूल्यवान प्रतिभूति (Valuable security) शब्द उस दस्तावेज के द्योतक (Denote a document) हैं, जो ऐसा दस्तावेज है, या होना तात्पर्यित (Purported) है, जिसके द्वारा कोई क़ानूनी अधिकार सॄजित (Legal rights created), विस्तॄत (Extended), स्थानांतरित (Transferred), सीमित (Limited), नष्ट किया जाए या छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि वह क़ानूनी दायित्व (Legal liability) के अधीन है, या कोई क़ानूनी अधिकार (Legal right) नहीं रखता है.
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क्या है आईपीसी (IPC) भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC ब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.
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