Inside Story: हमला, हत्या और दरिंदगी... मणिपुर में लड़कियों के गुनहगारों में खाकीवाले भी शामिल!
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मणिपुर की तस्वीरों को देख कर दिमाग सुन्न हो जाता है. यकीन नहीं आता कि ये तस्वीरें उसी आज़ाद भारत की हैं, जिस पर हम गर्व करते हैं. उसी भारत की जिसे हम फिर से विश्वगुरु बनाने का ख्वाब पाले बैठे हैं. समझ में नहीं आता कि ये किस मिट्टी के बने हुए लोग हैं.
Manipur Violence: वो द्वापर युग था, ये कलियुग है. वो महाभारत था, ये आज का भारत है. इज़्जत तार–तार वहां भी हुई थी, इज़्जत नीलाम यहां भी हुई है. तमाशा वहां भी बना था, तमाशबीन यहां भी हैं. तब भरी सभा में दुशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए ले कर आया था और आज की द्रौपदी को बीसियों दुशासनों ने खुलेआम निर्वस्त्र कर सबकी आंखों के सामने घसीटा है. उस सभा में जब द्रौपदी का अपमान हो रहा था तो भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसी महान हस्तियां अपना कर्तव्य भूल कर मूक दर्शक बन गई थीं और आज के हुक्मरान इतना सबकुछ होने के बावजूद सिर्फ और सिर्फ बातें बना रहे हैं.
सच पूछिए, तो महाभारत और आज के भारत का असली फर्क तो यही है कि तब द्रौपदी के बुलाने पर श्री कृष्ण तो आ गए, लेकिन रोती–बिलखती, इज्जत की भीख मांगती मणिपुर की बेटियों के लिए कोई भी देवदूत बनकर नहीं आया.
सुनो द्रौपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे, छोड़ो मेहंदी खड्ग संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो.. द्यूत बिछाए बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जाएंगे, सुनो द्रौपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे.
कवि पुष्यमित्र उपाध्याय की ये कविता शायद आज के इस माहौल में, मणिपुर की उन तस्वीरों पर सबसे ज्यादा मौजू है. सचमुच अगर सबकुछ देखते हुए सत्ता और शासन अपनी आंखें मूंद ले, इंसाफ और कार्रवाई की बात तो करें, लेकिन धरातल पर कुछ नजर ना आए, तो फिर लाचारगी और नाउम्मीदी का पैदा होना तो लाजिमी है. दिल कचोटता है. मन सवाल पूछता है कि इंसान आख़िर करे तो क्या करे.
दिमाग सुन्न कर देने वाला वीडियो मणिपुर की तस्वीरों को देख कर दिमाग सुन्न हो जाता है. यकीन नहीं आता कि ये तस्वीरें उसी आज़ाद भारत की हैं, जिस पर हम गर्व करते हैं. उसी भारत की जिसे हम फिर से विश्वगुरु बनाने का ख्वाब पाले बैठे हैं. समझ में नहीं आता कि ये किस मिट्टी के बने हुए लोग हैं. जिन्होंने अपनी सोच, अपने विवेक और अपनी बुद्धि से जाने कैसा बैर पाल लिया है. ये जो कुछ कर रहे हैं, वैसा तो जानवर भी नहीं करते. शहरों-अट्टालिकाओं में रहने-जीनेवाले लोग अक्सर सभ्य होने का ढोंग करते हुए दूसरों को कबिलाई बता कर मुहाबिसें करते हैं. अक्सर लोगों की एहसास-ए-बेहतरी का यही जुमला होता है. लेकिन आज अगर ये तस्वीरें वाकई कबीलों में रहने वाले लोगों की निगाहों से गुज़र जाएं, तो शायद वो भी हमसे पूछ लेंगे कि बताओ सभ्य कौन है और बर्बर कौन?
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