INDIA गुट के लिए दिल्ली-यूपी में क्यों अनुकूल हैं गठबंधन के हालात, जबकि पंजाब-बंगाल में नहीं
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चंडीगढ़ मेयर चुनाव में कुलदीप कुमार की जीत को INDIA ब्लॉक के जिंदा होने का पहला सबूत माना गया, और दूसरा सबूत यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन के रूप में मिला है. संभावना तो दिल्ली में भी बातचीत अभी खत्म नहीं हुई है, लेकिन क्या कारण है कि पंजाब और पश्चिम बंगाल में गठबंधन का कोई आधार नहीं बन पा रहा है?
चंडीगढ़ मेयर चुनाव में बीजेपी की हार के बाद से ही INDIA ब्लॉक की सांसे सुनाई देने लगी थीं, लेकिन पंजाब में तो हाल ये है कि गठबंधन की चर्चा तक नहीं है - और उत्तर प्रदेश में तो ऐसा लग रहा है जैसे विपक्षी गठबंधन चहलकदमी करने लगा हो.
और हाल ये है कि उत्तर प्रदेश के साथ साथ कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच डील मध्य प्रदेश में भी फाइनल हो गई है. यूपी में समाजवादी पार्टी ने जहां कांग्रेस को 17 सीटें दी है, मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस एक सीट छोड़ने को तैयार हो गई है - और अब ये मामला ऑफिशियल हो गया है.
बातचीत तो चल ही रही थी, और इसी वजह से अखिलेश यादव भारत जोड़ो न्याय यात्रा से भी दूरी बना कर चल रहे थे. सुनने में आया था कि कांग्रेस अपने प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के लिए बलिया लोक सभा सीट चाह रही थी, लेकिन समाजवादी पार्टी का जनाधार मजबूत मानते हुए अखिलेश यादव तैयार नहीं हुए. आखिरी बातचीत में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने मुरादाबाद सीट पर भी अपनी जिद छोड़ दी, और बिजनौर सीट पर भी कांग्रेस को दावा छोड़ना पड़ा.
जैसे कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने समाजवादी पार्टी के साथ बातचीत सही दिशा में होने का संकेत दिया था, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कांग्रेस के साथ गठबंधन का मामला प्रगति पर बताया था. कांग्रेस नेता की बात तो अंजाम तक पहुंच चुकी है, लेकिन AAP नेता की बात अब भी अधर में ही लटकी दिखाई पड़ रही है.
अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के गठबंधन की बात भी सिर्फ दिल्ली के लिए कही है, पंजाब का जिक्र आने पर तो जैसे रास्ता ही बदल कर चल देते हैं - और बिलकुल वैसा ही रवैया ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ पश्चिम बंगाल में अपना रखा है.
आखिर क्या कारण है कि न तो पंजाब में कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए अरविंद केजरीवाल तैयार हैं, और न ही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी?
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