
COP26: ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में अहम है भारत,चीन समेत इन 5 देशों की भूमिका
The Quint
COP26 Global warming ग्लासगो में क्लाइमेट टॉक्स के दौरान अमेरिका, चीन, ब्रिटेन और रूस के साथ भारत की भूमिला अहम रहने वाली है. इसमें भारत का जोर इस बात पर होगा कि अमीर देश गरीब देशों को कितनी मदद करते हैं.
ग्लासगो में क्लाइमेट टॉक्स (Glasgow Climate Change Conference) कुछ ही दिन दूर हैं, और शायद यह आखिरी मौका है जब इस शताब्दी में विश्व स्तर पर पृथ्वी की गरमाइश को 1.5 डिग्री सेंटिग्रेट से ज्यादा होने से रोका जा सके.ADVERTISEMENTइस जलवायु सम्मेलन (climate conference) में दुनिया के 100 से ज्यादा नेता जमा होंगे और कई अहम मसलों पर बातचीत करेंगे, जैसे यह तय करना कि एमिशन को कम करने के वादे को कितने वक्त में पूरा किया जाएगा. इसके लिए किन देशों को महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है?इस खास सम्मेलनों की प्रकृति ऐसी है कि सिर्फ कुछ देश मिलकर इसे कामयाब नहीं बना सकते- भले ही जलवायु परिवर्तन में उनकी भूमिका या ताकत जो भी हो. हमारे पास ऐसी कई मिसाल हैं.1997 के क्योटो प्रोटोकॉल टॉक्स में सभी विकसित देशों को टारेगट और टाइम लिमिट तय करनी थी, यह भी तय करना था कि इन कैलकुलेशंस में किसे शामिल किया जा सकता है, और किसे हटाया जा सकता है. इसमें ऑस्ट्रेलिया (Australia) ने अड़ंगा लगाया. यानी मांग पूरी न होने तक वह समर्थन वापस लेने की धमकी देकर समझौते को ताक पर रख दिया.ADVERTISEMENT2009 में कोपेनहेगन में क्योटो प्रोटोकॉल के बाद नए समझौते की योजना थी, जिसमें एमिशन को कम करने के नए टारगेट तय होने थे. तब चीन और अमेरिका (America) की जिद ने नया समझौता होने ही नहीं दिया.2015 में पेरिस वार्ता के आयोजकों को सबक मिल चुका था. इसलिए 20 देशों के बीच जिम्मेदारियों को साफ तौर से बांटने की बजाय उन्होंने सभी देशों से कहा कि वे अपने हिसाब से टारगेट तय करें. एमिशन को कम करने में वे कितना योगदान देंगे और उनका अपना-अपना टारगेट क्या है.लेकिन ग्लासगो में एकता फिर भी जरूरी हैयूं ग्लासगो सम्मेलन की सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करेगी कि भागीदार देश एक राय हो जाएं, लेकिन फिर भी तीन वजहों से अंतरराष्ट्रीय सहयोग फिर भी अहम हैं.पहला, पेरिस समझौते के बाद इस सम्मेलन में सभी देश एमिशन कम करने का नया वादा करेंगे. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के नए लक्ष्यों की समय सीमा पर भी सहमति कायम होगी.ADVERTISEMENTदूसरा, इस दौरान अमीर देश गरीब देशों की वित्तीय मदद करेंगे ताकि वे ग्रीनहाउस गैसों के एमिशन को कम करने के उपाय कर सकें जैसे नए कोयला स्टेशन बनाना. साथ ही जलवायु परिवर्तन के टाले न जा सकने वाले असर से निपटा जा सके, जैसे गंभीर और जल्द-जल्द आने वाली विपदाएं.यूं सबसे बुनि...