CONTAMINATED: युद्धग्रस्त इलाक़ों में महिलाओं-बच्चों की निजी जंग और ज़िंदगी की तस्वीर पेश करता है 'कॉन्टामिनेटेड'
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पिछले दिनों युद्धग्रस्त इलाक़ों से आने वाली तस्वीरों ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया. दुनिया भर में हुए युद्धों पर अगर नज़र डाली जाए, तो यही मिलेगा कि यह हमेशा विनाशक ही रहा है. जंग के वक़्त महिलाओं और बच्चों को मानसिक युद्ध से लेकर रोज़मर्रा की ज़िंदगी कई मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं.
मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊं तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊंगा - तहज़ीब हाफ़ी
यूक्रेन, रूस, फ़िलिस्तीन, इज़रायल और अफ़गानिस्तान में धार्मिक/राजनीतिक जंग की जद्दोजहद में वक़्त से लड़ती ज़िंदगियां दुनिया के सामने हैं. और इन जंगों के होने में जिनकी कोई सीधी भूमिका नहीं है, उनको दुनिया ने तड़पते और चीख़ते देखा है. वो हैं- महिलाएं और बच्चे, जिनको एक नहीं, कई जंगें लड़ते देखा जाता है. पिछले दिनों युद्धग्रस्त इलाक़ों से आने वाली तस्वीरों ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया. दुनिया भर में हुए युद्धों पर अगर नज़र डाली जाए, तो यही मिलेगा कि यह हमेशा विनाशक ही रहा है.
जंग के वक़्त महिलाओं और बच्चों के मानसिक युद्ध से लेकर रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जो जंग होती है, उसी पर ग़ौर करने की कोशिश करता है- 'कॉन्टामिनेटेड', जिसके प्रजेंटेशन का ज़रिया फिजिकल थिएटर है.
'कॉन्टामिनेटेड' का हुआ मंचन दिल्ली के 'स्टूडियो सफ़दर' में रविवार, 19 मई को 'कॉ न्टामिनेटेड' का मंचन हुआ. लेखक रोहिण कुमार इस थिएटर के निर्देशक हैं और दक्षिण एशियाई थिएटर आर्टिस्ट प्रकृति शर्मा जैज़ ने कॉन्टामिनेटेड में अदाकारा की भूमिका नभाई है. आने वाले दिनों में कॉन्टामिनेटेड का मंचन मुंबई, कोच्चि और गोवा में कराए जाने की तैयारी है.
'कॉन्टामिनेटेड' में यह बताने की कोशिश की गई है कि आमतौर पर युद्धग्रस्त इलाक़ों में रहने वाला हर नागरिक प्रभावित होता है, लेकिन महिलाओं और बच्चों की ज़िंदगी पर कई पहलुओं से असर पड़ता है. शिक्षा और रोज़गार, गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी, बच्चों की व्यवस्था, महिलाओं की बीमारियों के लिए ज़रूरी दवाओं को हासिल करने में बेहद परेशानी होती है. इसमें ज़्यादातर नाउम्मीदी ही हाथ लगती है. इन तमाम तरह की परेशानियों और जद्दोजहद के बीच महिलाएं घर का काम करती हैं. इस दौरान जब उनकी कोशिश और चीख़ से कोई हल नहीं निकलता. जब उनकी आंखें, हाथ-पैर, उनका शरीर असहाय महसूस करता है, तो वह दिमाग़ी तौर पर किस दौर से गुज़रती हैं, किस तरह से ख़ुद को ढालती हैं और क्या सोचती हैं, यह थिएटर इसी मनोदशा पर प्रकाश डालता है.
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