CJI बोबडे का आखिरी केस: निराशाजनक कार्यकाल, निराशाजनक अंजाम
The Quint
CJI Bobde’s tenure: भारत के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शरद अरविंद बोबडे का कार्यकाल कैसा रहा? Bobde’s tenure as CJI will be remembered only for how little it can be remembered for.
23 अप्रैल 2021, भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे के कार्यकाल का आखिरी दिन है. इस पद का पिछले कुछ सालों में सबसे लंबा कार्यकाल खत्म हो रहा है. इस पद पर रहते हुए जस्टिस बोबडे का आखिरी काम देश के COVID-19 संकट पर सुओ मोटो (स्वतः संज्ञान) सुनवाई का रहा, जो कि शायद 1 साल देरी से हुई है.1 साल पहले जब कोविड महामारी के कारण देश में लॉकडाउन लगा था और लाखों प्रवासी मजदूर केंद्र सरकार की स्पष्ट योजना के अभाव के कारण घरों को वापस जाने लगे थे, तब सुप्रीम कोर्ट और CJI बोबडे निष्क्रिय रहे.जब कोर्ट के सामने कार्रवाई करने के लिए जनहित याचिकाओं का अंबार लग गया तब CJI बोबडे ने केंद्र सरकार की, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से, सारी बातों को फेस वैल्यू पर स्वीकार कर लिया. इसमें यह झूठ भी शामिल था कि उस समय कोई भी प्रवासी मजदूर पैदल नहीं जा रहा था और यह बोलने की बेशर्मी भी कि फेक न्यूज के कारण प्रवासी मजदूर वापस जाने लगे थे.जब तक कि CJI को यह लगता कि स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जितना केंद्र सरकार बता रही है, हम सबको याद है कि हालात बदतर हो गए थे .सुप्रीम कोर्ट ने हर ओर से आती आलोचनाओं के बाद देरी से प्रवासियों के लिए सुओ मोटो केस लिया, जिसका ज्यादा फायदा नहीं हुआ. फिर भी कुछ तो किया.आखिरी काम भी सवालों के घेरे मेंजिस तरह से CJI बोबडे ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन 23 अप्रैल को नए केस की सुनवाई रखी, वो भी सवाल उठाता है.इसकी शुरुआत तब हुई जब माइनिंग कंपनी वेदांता ने गुरुवार को अपने बंद पड़े तूतीकोरिन के ऑक्सीजन प्लांट को खोलने की इजाजत मांगी.CJI के इस सुओ मोटो सुनवाई के पीछे कोई बड़ा तार्किक आधार नहीं था. उनका तर्क था कि आपदा के बीच विभिन्न हाई कोर्ट्स का सुओ मोटो ऑर्डर पास करना उलझन पैदा कर रहा था( जबकि ऐसा नहीं है .वे केंद्र सरकार की जवाबदेही तय कर रहे थे और उन सारों के ऑर्डर में कोई अंतर्विरोध भी नहीं था)आगे जब उन्होंने वेदांता के पक्षकार हरीश साल्वे ,जिन्होंने हाल के मामलों में केंद्र सरकार का ही पक्ष लिया है ,को इस सुओ मोटो केस में एमिकस क्यूटी (न्याय मित्र) नियुक्त कर दिया तो और सवाल उठने लगे. जबकि हरीश साल्वे इस संकट के बीच भारत में हैं भी नहीं.इस केस में पहला ऑर्डर पास करने के साथ ही कार्रवाई सवालों के घेरे में आ गई और उसके बाद तो आगे ही बढ़ती गई. उनके सा...More Related News