Buddha Purnima 2024 Date: कैसे हुई थी गौतम बुद्ध की मृत्यु? दर्दनाक है आखिरी दिन की कहानी
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Buddha Purnima 2024: महात्मा बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में अपना महल छोड़ दिया था और 6 वर्ष तक एक वृषभ के नीचे तपस्या की थी. उन्होंने अपना पहला उपदेश सरनाथ में दिया था. क्या आप जानते हैं कि आखिर गौतम बुद्ध की मृत्यु कैसे हुई थी.
Buddha Purnima 2024 Date: हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती का त्योहार मनाया जाता है. इस त्योहार का हिंदू और बौद्ध धर्म दोनों में ही विशेष महत्व है. दरअसल, गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है. गौतम बुद्ध ने संसार को सत्य, अहिंसा, प्रेम, दयालुता, करुणा, सहानुभूति और परोपकार का पाठ पढ़ाया था. क्या आप जानते हैं कि गौतम बुद्ध हमेशा से एक परम संन्यासी नहीं थे, बल्कि उनका जन्म एक बहुत ही संपन्न परिवार में हुआ था.
बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के पास लुम्बनी नामक जगह पर हुआ था और माता-पिता ने उनका नाम सिद्धार्थ रखा था. आगे चलकर एक घटना ने राजकुमार सिद्धार्थ का पूरा जीवन ही बदल डाला और उन्होंने राजपाट छोड़कर वैराग्य धारण कर लिया. कहते हैं कि महात्मा बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में अपना महल छोड़ दिया था और 6 वर्ष तक एक वृक्ष के नीचे तपस्या की थी. उन्होंने अपना पहला उपदेश सरनाथ में दिया था. आइए आपको बताते हैं कि गौतम बुद्ध की मृत्यु कैसे हुई थी.
कैसे हुई थी बुद्ध की मृत्यु?
ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु ने गौतम बुद्ध के अंतिम समय और उनकी मृत्यु के बारे में बताया है. सद्गुरु के मुताबिक, गौतम बुद्ध की मृत्यु जहरीला खाना खाने से हुई थी. हालांकि उसे खाने के बाद बुद्ध को उसमें जहर होने की अनुभूति हो गई थी. इसलिए उन्होंने मेजबान से वो खाना अपने शिष्यों को परोसने से रोक दिया था. गौतम बुद्ध ने मेजबान से कहा, 'आपका खाना बहुत स्वादिष्ट था. मैं वो खा चुका हूं. लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेरे शिष्य इस खाने को पचा पाएंगे. इसलिए कृपया उन्हें यह खाना न दें.' और इस तरह गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को उस जहरीले खाने से बचा लिया था.
जहरीला भोजन शरीर में जाने के बाद गौतम बुद्ध की तबियत बिगड़ने लगी और वो वहीं जमीन पर लेट गए. ऐसे में उनका अंतिम संदेश सुनने के लिए वहां मौजूद सभी शिष्य उनके नजदीक आ गए. बुद्ध उस जगह से उठ भी नहीं पा रहे थे, तो वहीं अपना सिर टिकाकर लेटे रहे और उपदेश देना शुरू कर दिया.
गौतम बुद्ध की इस मुद्रा (पोज़) को आज 'महापरिनिर्वाण' के नाम से जाना जाता है. बौद्धों के लिए यह मुद्रा अत्यंत पवित्र हो चुकी है. लेटे हुए गौतम बुद्ध की प्रतिमा को उनके अंतिम संदेश की वजह से विशेष स्थान मिला हुआ है. बुद्ध की नकल करते हुए कई बौद्ध उनकी तरह लेटने लगे. यह एक संस्कृति बन गई. लेकिन वे केवल इस मुद्रा की नकल कर सकते हैं, बुद्ध नहीं बन सकते.
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