BJP का मास्टरस्ट्रोकः महाराष्ट्र को बहुत दूर तक देख पा रही है भाजपा, ये है असली रणनीति
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महाराष्ट्र में जिस भाजपा ने शिवसेना को मुख्यमंत्री पद देने के बजाय गठबंधन तोड़ लिया था, आज वही भाजपा एकनाथ शिंदे को समर्थन क्यों दे रही है. क्या है इसके पीछे की असली कहानी?
छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के एक सखा थे- तानाजी मालुसरे. सिंहगढ़ के ऐतिहासिक युद्ध में तानाजी मारे गए. सिंहगढ़ शिवाजी का हुआ. तानाजी शहीद हुए जिसपर शिवाजी ने कहा, गढ़ आला पण सिंह गेला. यानी गढ़ हमने जीत लिया लेकिन सिंह चला गया. कथा न सही, लेकिन शिवाजी का यह वाक्य फिलहाल शिवसेना के लिए सटीक साबित होता दिख रहा है. शिवसेना को गढ़ मिल गया है और शिवसेना अपने सिंह से मुक्त हो गई है. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने गुरुवार को अपनी प्रेस कांफ्रेंस में खुद मुख्यमंत्री न बनकर शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा करके सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया. लोग तो लोग, भाजपा के विधायक तक इस बात से हतप्रभ थे कि जिस कुर्सी के लिए भाजपा ने शिवसेना से गठबंधन तोड़ लिया था, आज वो कुर्सी सामने है और फडणवीस उसपर बैठने से इनकार कर रहे हैं. महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री अब एकनाथ शिंदे हैं. शिंदे पद की शपथ लेंगे. लेकिन यह केवल शिंदे के मुख्यमंत्री बनने की शपथ नहीं है. यह मातोश्री मुक्त शिवसेना की शपथ है. यह परिवारवाद मुक्त राजनीति की शपथ है. ये बादलों के बाद ठाकरे से वीकिर की शपथ है. यह शपथ है राजनीति के मोदी मॉडल की जिसमें परिवारों के विरोध पर खड़ी पार्टी अपने साथ चल रहे परिवारों से भी मुक्ति चाहती है. ऐसा प्रकट रूप से लग सकता है कि भाजपा के लिए मुख्यमंत्री पद का बलिदान एक पीछे हटा कदम है. लेकिन दरअसल ये अपने कदमों को पीछे खींचकर आगे कूदने की तैयारी है. भाजपा इस एक फैसले से बहुत कुछ साधती नजर आ रही है. भाजपा का यह एक कदम कई सवालों, चिंताओं और संभावनाओं के उत्तर अपने अंदर समेटे हुए है. भाजपा का मास्टरस्ट्रोक शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के कई निहितार्थ हैं. इसे समझने के लिए प्रेस कांफ्रेंस में फडणवीस के बयान पर गौर करें. उन्होंने कहा- एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री होंगे. शिवसेना की सरकार बनेगी. भाजपा उनका समर्थन करेगी. दरअसल, एकनाथ शिंदे वैसे भी उद्धव के साथ सुलह कर लेते तो उपमुख्यमंत्री बन ही सकते थे. लेकिन मुख्यमंत्री बनकर शिंदे शिवसेना के मुख्यमंत्री माने जाएंगे. उनको भाजपा का समर्थन होगा. सरकार शिवसेना की होगी. शिवसैनिकों के लिए यह एक बड़ा संदेश है. इससे पार्टी का एक बड़ा हिस्सा और समर्थक शिंदे के खिलाफ खड़े होने के बजाय उनके साथ खड़े होंगे.
शिंदे शिवसेना की सरकार का नेतृत्व करते हुए न केवल पार्टी और समर्थकों को साधेंगे बल्कि शिवसेना को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ला पाने की स्थिति में भी होंगे. यहां से ठाकरे मुक्त शिवसेना की शुरुआत के लिए एक अहम दांव खेल दिया गया है. शिंदे सरकार और संगठन, दोनों ही मोर्चों पर ठाकरे मुक्त शिवसेना को स्थापित करने का काम करने वाले हैं. शिंदे के मुख्यमंत्री बनने से न तो शिंदे पर सत्ता लोलुप होने का इल्जाम लगेगा और न ही भाजपा पर. पिछली बार भाजपा ने जैसे शिवसेना का दामन छोड़ा था और जिस तेजी से देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ली थी, उससे लोगों के बीच भाजपा के सत्ता लोलुप होने की छवि बनती जा रही थी. उद्धव सरकार पर लगातार हो रहे हमलों को भी भाजपा की सत्ता पाने की बेचैनी के तौर पर ही देखा गया था. शिंदे को आगे करके भाजपा ने बड़ा दिल दिखा दिया है और ऐसे आरोपों को विराम देने की ओर एक बड़ा कदम उठाया है. फडणवीस ने हिंदुत्व के मुद्दे पर समर्थन की बात कहकर आगे की रणनीति का एक और अहम संकेत दिया है. शिंदे और भाजपा अबतक उद्धव ठाकरे के सत्ता लोलुप होने और सिद्धांतों से समझौता करके कुर्सी पाने वाले चरित्र को मुद्दा बनाकर आगे बढ़ी है. अब यहां से शिंदे ऐसे फैसलों पर जोर देंगे जो असली और पुख्ता हिंदुत्व के तौर पर देखे जाएंगे. ऐसे फैसले लेते शिंदे और इनका समर्थन करती भाजपा अब हिंदुत्व पर ठाकरे और लोगों के सामने एक बड़ी लकीर खींचेंगे. लोगों के बीच इसे स्थापित कर दिया जाएगा कि ठाकरे को सत्ता से बाहर करने के पीछे का असल मकसद हिंदुत्व की राजनीति की पुनर्स्थापना था, कुर्सी की भूख नहीं. भाजपा के लिए शिंदे वाली शिवसेना का समर्थन करना दरअसल परिवार और परिवारवाद के विरोध के रूप में देखा जाएगा, शिवसेना के विरोध के रूप में नहीं. इससे वैचारिक समता की जमीन पर दोनों पार्टियों के समर्थकों के बीच तनाव की गुंजाइश कमतर होगी. जब यह साबित हो जाएगा कि भाजपा शिवसेना विरोधी नहीं है तो ठाकरे के पास कोई भावनात्मक या विक्टिम कार्ड जैसी संभावना नहीं बचेगी. भाजपा कतई नहीं चाहती कि ठाकरे अभी या आगे पथभ्रष्ट के बजाए पीड़ित के रूप में देखे जाएं. भाजपा के लिए आगे की राजनीति के लिए यह एक बहुत अनुकूल परिस्थिति होगी. भाजपा यह भी स्थापित करना चाहती है कि बाला साहेब ठाकरे की सोच और पार्टी किसी परिवार की जागीर नहीं है. बाला साहेब एक विचार हैं और भाजपा उसका पूरा सम्मान करती है. वो बाला साहेब के परिवार से मुक्त होकर भी बाला साहेब के विचारों को आगे बढ़ाने वाली पार्टी के रूप में खुद को स्थापित करना चाहती है. महा-भाजपा दरअसल, भाजपा को भविष्य में एक संभावना दिख रही है. महाराष्ट्र में राजनीति के पटल पर अपने दम पर खड़े होकर राजनीति करने और सत्ता तक आने की संभावना. एक ऐसी संभावना जिसमें भविष्य की शिवसेना न केवल उनके साथ होगी बल्कि उनपर निर्भर भी होगी. एक ऐसी संभावना जहां हिंदुत्व की ज्यामिती का बॉक्स भाजपा के हाथ में होगा, किसी उद्धव, आदित्य या राज ठाकरे के हाथों में नहीं. भाजपा की इस संभावना में भविष्य में एकपथ-एकरथ वाला गठजोड़ है. भाजपा और शिवसेना साथ-साथ हैं. विधायक, समर्थक, सारथी और समर... सबमें भाजपा एक अग्रसर की तरह खड़ी दिखेगी. शिवसेना के सिंह के मुंह में दांत होंगे भी तो उन्हें भाजपा ही गिन रही होगी. भाजपा के लिए शिंदे को समर्थन देने का फैसला ढाई साल की राजनीतिक खींचतान में बिगड़ी छवि को सुधारने का महायज्ञ भी है और भविष्य में उससे फलीभूत होने की गारंटी भी. मुंबई शहर से लेकर महाराष्ट्र की सत्ता तक पहली बार भाजपा इतनी मजबूत और प्रभावी स्थिति में होगी. उसे किसी रिमोट का खतरा नहीं होगा. बल्कि इस बार रिमोट खुद भाजपा के हाथ में होगा. मराठी थिएटर में भाजपा की इस दिलचस्प पटकथा का पर्दा उठ चुका है. नगाड़े बोल उठे हैं. आगे-आगे खेल है. उद्धव अब दर्शक दीर्घा की अंतिम लाइन में हैं शायद, सिर उचकाते हुए, असहज और अकेले.
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