
BJP और AAP के लिए क्यों नाक का सवाल बना MCD चुनाव? कैसे काम करती है दिल्ली की 'छोटी सरकार'
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दिल्ली में 'छोटी सरकार' का चुनाव बीजेपी और आम आदमी पार्टी के लिए नाक का सवाल बन गया है. आखिर कैसे काम करती है दिल्ली की छोटी सरकार, आइए नजर डालते हैं एमसीडी की कार्यप्रणाली पर...
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में नगर निगम (एमसीडी) चुनाव का बिगुल बज चुका है. एमसीडी के सभी 250 पार्षद सीटों पर चार दिसंबर को वोट डाले जाएंगे. इस बार के चुनाव में बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच कड़ा त्रिकोणीय मुकाबला होता दिख रहा है. तीनों ही पार्टियों के लिए ये चुनाव नाक का सवाल बन गया है. कारण, हजारों करोड़ रुपये के बजट वाली एमसीडी के पास कई सारी शक्तियां होती हैं, यही वजह है कि इसे दिल्ली की छोटी सरकार भी कहा जाता है.
दिल्ली की सत्ता से भले ही बीजेपी दो दशक से बाहर हो, लेकिन एमसीडी पर पिछले 15 वर्षों से उसका का कब्जा बरकरार है. बीजेपी एक बार फिर से एमसीडी पर अपनी 'बादशाहत' को कायम रखने की कवायद कर रही है तो दिल्ली की सत्ता पर आठ साल से काबिज आम आदमी पार्टी ने एमसीडी चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. वहीं, कांग्रेस दिल्ली में अपने खोए हुए सियासी जनाधार को वापस पाने के लिए एमसीडी चुनाव में पूरी मजबूती से डटी है.
दरअसल, दिल्ली नगर निगम के पास कई तरह के अधिकार होते हैं. इसके जरिए किए जाने वाले विकास कार्यों से कोई भी पार्टी अपना वोट बैंक तैयार कर सकती है. यूं तो एमसीडी भी देश के बाकी नगर निगमों की तरह ही काम करता है, लेकिन दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होने के चलते राज्य सरकार और नगर निगम के कई अधिकार ओवरलैप करते हैं. इसमें सड़कें और नालों को मेंटेन करने जैसे कई काम शामिल हैं.
एमसीडी के पास जिम्मेदारी
एमसीडी के पास स्ट्रीट लाइट, साफ-सफाई, प्राइमरी स्कूल, प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, दिल्ली बार्डर पर टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, शमशान और जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र. इसके अलावा डिस्पेंसरीज, ड्रेनेज सिस्टम, बाजारों की देखरेख और पार्किंग जिम्मा एमसीडी के पास है. प्राइमरी स्कूल और अस्पताल का कार्य भी एमसीडी द्वारा किए जाते हैं. एमसीडी के लिए सड़क निर्माण से लेकर स्कूल और टैक्स कलेक्शन आय का बड़ा स्रोत होता है.
एमसीडी के जरिए मुख्यमंत्री की कुर्सी का रास्ता?

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