Bhishma Ashtami: क्यों किया था भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार? जानिए भीष्म अष्टमी का व्रत कथा और उसका महत्व
ABP News
Bhishma Ashtami : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं, उनको जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं.
Bhishma Ashtami : माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं. बाल ब्रह्मचारी भीष्म पितामह की मृत्यु इस तिथि को हुई थी. महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए पितामह भीष्म अर्जुन के बाणों से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुए थे. जब उनको बाण लगा था, तब सूर्य दक्षिणायन थे. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं, उनको जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है, वह मोक्ष को प्राप्त करते हैं. सूर्य देव मकर संक्रांति के दिन उत्तरायण होते हैं और पितामह भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. इसलिए सूर्य के उत्तरायण होने के बाद माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को इन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे. वह दृढ़ निश्चयी, गंभीर तथा निर्मल प्रकृति के थे. इस दिन भीष्म पितामह के निमित्त तिलों के साथ तर्पण तथा श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को संतान की प्राप्ति होती है. पद्म पुराण के अनुसार जीवित पिता वाले व्यक्ति को भी इस दिन भीष्म पितामह के लिये तर्पण करना चाहिए. आइए जानते हैं किस कथा का वाचन करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है?
व्रत की कथा