
Analysis: क्या एक बार फिर कांग्रेस की संभावनाओं पर भांजी मार सकते हैं शरद पवार? पढ़ें चार पहलू
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एनसीपी प्रमुख शरद पवार के लगातार आ रहे बयानों से विपक्षी एकता को झटके पर झटका लग रहा है. बीते एक महीने के दौरान शरद पवार ने सावरकर मुद्दे, अडानी मामला और डिग्री विवाद से खुद को दूर करने के बाद अब तो विपक्षी एकता पर ही बड़ा बयान दे दिया है. आखिर वह इस तरह के बयान क्यों दे रहे हैं, ये बड़ा सवाल है.
एक तरफ कांग्रेस विपक्षी एकता को लेकर जोर लगा रही है तो दूसरी तरफ एनसीपी चीफ शरद पवार बार-बार इससे दूर होते दिख रहे हैं. हालांकि उन्होंने खुले तौर पर ऐसा कोई ऐलान नहीं किया है, लेकिन जिस तरह से वह विपक्ष के उठाए हर मुद्दे से किनारा करते दिख रहे हैं, उससे ये साफ नहीं हो पा रहा है कि उनकी असल मंशा क्या है? खास बात ये है कि ऐसा पहली बार नहीं है. शरद पवार पहले भी कांग्रेस का साथ उन हालातों में छोड़ चुके हैं, जब-जब गांधी परिवार के किसी सदस्य में राष्ट्रीय राजनीति के शीर्ष पर पहुंचने की संभावनाएं दिखी हैं. सवाल ये है कि क्या एक बार फिर शरद पवार ऐसे ही किसी इतिहास को दोहराने वाले हैं.
विपक्षी एकता से अलग राह पर शरद पवार? महाराष्ट्र की राजनीति से निकल कर दिल्ली के तख्त तक की हवा में कुछ ऐसे ही सवाल घुले हुए हैं. सवाल है कि एनसीपी चीफ शरद पवार का विपक्षी एकता को लेकर असल रुख क्या है? उनके हर रोज आ रहे अलग-अलग बयानों से कांग्रेस की पेशानी पर बल पड़ने लगे हैं कि, शरद पवार ऐसे नाजुक वक्त में क्या सोच रहे हैं जब कांग्रेस विपक्ष के सभी नेताओं को बीजेपी के खिलाफ एक अंब्रेला के नीचे लाने की कवायद में जुटी है. इस छाते को ऊंचा उठाकर कौन आगे बढ़ेगा, अभी ऐसे लीडर के चेहरा भी तय नहीं हो पाया है कि ये भीड़ तितर-बितर होने लगी है. संकट इस बात का अधिक है, शरद पवार जैसा पावरफुल नेता हर बार उस लीक से हटकर किनारे खड़ा हो जाता है, जिस पर चलकर विपक्षी दल एकता का दम भरने की कोशिश करते हैं.
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तो क्या शरद पवार पर भरोसा करना मुश्किल है? ऐसा है तो क्यों? इस सवाल का जवाब शरद पवार के उन बयानों में है जो अभी हाल ही में उन्होंने तमाम मुद्दों को लेकर दिए हैं, जिन्हें उठाकर विपक्ष ने हाइप क्रिएट करने की कोशिश की है. बहुत बारीकी से पवार की राजनीति को समझना है तो उनके पुराने लिए गए फैसलों पर भी नजर डाली जा सकती है, जो महाराष्ट्र की राजनीति का सर्वविदित इतिहास हैं. बल्कि कांग्रेस से बेहतर ये बात कौन जानता है कि जिन शरद पवार के साथ वह विपक्ष को एक करने में जुटी है, उनकी राजनीतिक पार्टी एनसीपी का जन्म ही कांग्रेस विरोध से हुआ था. चौंकिएगा मत, इस विरोध का मुद्दा थीं सोनिया गांधी और उनका विदेशी मूल....
कैसे सोनिया गांधी के विरोध से अस्तित्व में आई NCP साल था 1999, तारीख 15 मई. कांग्रेस की CWC की बैठक थी. शाम को हुई इस बैठक में अचानक ही शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर की ओर से विरोध के सुर सुनाई दिए. संगमा ने कहा, सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा बीजेपी लगातार उठा रही है. ये सुनना सोनिया के लिए उतना हैरानी भरा नहीं था, जितना वह अगले व्यक्ति की आवाज सुनकर हुईं. यह कोई और नहीं, शरद पवार थे, जिन्होंने तुरंत ही संगमा की बात का समर्थन किया और अपनी हल्की-मुस्कुराती आवाज में पहले तो संगठन में एकता लाने के लिए सोनिया गांधी की तारीफ की और फिर तुरंत ही अगली लाइन में प्रश्नवाचक चिह्न उछाल दिया.

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