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AI इंजीनियर सुसाइड केस: इस वजह से अधूरी रह जाएगी अतुल सुभाष की आखिरी ख्वाहिश, फिर अस्थियों का क्या होगा?
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कहते हैं मरते हुए इंसान की आखिरी ख्वाहिश जरूर पूरी करनी चाहिए. बेंगलुरु में खुदकुशी करने वाले एआई इंजीनियर अतुल सुभाष तो मरने से पहले पूरे देश को ही अपनी ख्वाहिश बता गए हैं. उनकी वही ख्वाहिश इस वक्त अस्थियों की शक्ल में कलश में बंद उनके भाई के हाथों में है.
कहते हैं मरते हुए इंसान की आखिरी ख्वाहिश जरूर पूरी करनी चाहिए. बेंगलुरु में खुदकुशी करने वाले एआई इंजीनियर अतुल सुभाष तो मरने से पहले पूरे देश को ही अपनी ख्वाहिश बता गए हैं. उनकी वही ख्वाहिश इस वक्त अस्थियों की शक्ल में कलश में बंद उनके भाई के हाथों में है. अतुल की आखिरी ख्वाहिश के हिसाब से इसे तब तक विसर्जित नहीं किया जाए, जब तक कि उन्हें इंसाफ नहीं मिल जाता. उनकी ख्वाहिश यहीं तक नहीं रुकती. वो आगे कहते हैं कि यदि अदालत इंसाफ ना दे पाए तो अदालत के बाहर ही किसी गटर में उसकी अस्थियों को बहा दिया जाए.
अतुल ने अपनी अस्थियों को लेकर दो ख्वाहिशें जताई हैं. पहली, फैसला आने तक अस्थियां सहेज कर रखी जाएं. दूसरी फैसला हक में ना आने पर कोर्ट के बाहर बहा दी जाए. अतुल तो अपनी ख्वाहिश बताकर दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. अब उनके पीछे इस दुनिया में यदि उनकी इन दोनों ख्वाहिशों को कोई पूरी कर सकता है तो वो दो ही लोग हैं. एक अदालत और दूसरा परिवार. फिलहाल परिवार ने अस्थियों को लेकर अपनी शुरुआती राय बता दी है. उनके छोटे भाई विकास मोदी ने कहा है कि इंसाफ मिलने तक वो अतुल की अस्थियां सहेज कर रखेंगे.
अब बची अदालत. यानि अतुल की आखिरी ख्वाहिश पूरी होगी की नहीं ये उसके हाथ में है. क्योंकि अतुल ने अदालत से ही इंसाफ मांगा है. ना सिर्फ इंसाफ मांगा है बल्कि ये तक कह गया है कि अदालत इंसाफ ना दे पाए तो किसी गटर में अस्थियां डाल दी जाएं. अतुल ने अपनी मौत के लिए जिन लोगों को जिम्मेदार ठहराया है कायदे से उनके खिलाफ धारा 306 के तहत भी मामला बनता है. यानि खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला. इस धारा के तहत अधिकतम 10 साल की सजा तय है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले इस मामले में रोड़ा बन सकते हैं.
इसी 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले को पटलते हुए ये कहा था कि किसी को खुदकुशी के लिए उकसाने के मामले में तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि ये साबित ना हो जाए कि वो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट उसकी मौत से ना जुड़ा हो. ऐसे केस में मौत की टाइमिंग भी एक अहम सबूत साबित होती है. दरअसल गुजरात में एक पत्नी की खुदकुशी के मामले में उसके पति और ससुराल वालों पर खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला दर्ज हुआ था. गुजरात की निचली अदालत और हाईकोर्ट ने दोषियों को 10 साल की सजा सुनाई थी.
क्या कहती है आईपीसी की धारा 306, कितनी सजा मिलती है?
सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलटते हुए उन्हें बरी कर दिया. ऐसे में यही लगता है कि अतुल के ससुराल वालों में से किसी को भी उसकी मौत का जिम्मेदार नहीं ठहराया जाए. पत्नी, सास, साला, चाचा कोई भी अतुल को खुदकुशी के लिए उकसाने की धारा में नहीं लिपटेगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कहा है कि आईपीसी की धारा 306 के तहत सिर्फ उन्हीं लोगों को सजा दी जा सकती है जो किसी को खुदकुशी के लिए सीधे तौर पर उकसाते हैं. इस बात के भी पुख्ता सबूत होने चाहिए कि उकसाने वाला खुदकुशी के दौरान सीधे तौर पर उसकी मौत से जुड़ा हो.
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