
9 साल, 9 दल... चंद्रबाबू नायडू का वह मॉडल, जिसे फॉलो कर संसद में मोदी सरकार का संकटमोचक बनती रही हैं 'विपक्षी पार्टियां'
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मोदी सरकार के नौ साल में कई ऐसे मौके आए जब विपक्ष में रहते हुए भी वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी जैसी पार्टियां सरकार के लिए संकटमोचक बनती रही हैं. विपक्ष में रहते हुए भी राजनीतिक पार्टियां सरकार का संकटमोचक क्यों बनती रही हैं?
लोकसभा चुनाव में कुछ महीने का ही समय बचा है. केंद्र की सत्ता पर पूर्ण बहुमत के साथ काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार संसद के चालू मॉनसून सत्र में विपक्ष के आक्रामक तेवरों की वजह से घिरी है. विपक्षी कांग्रेस और तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया है. दिल्ली में ट्रांसफर-पोस्टिंग के पावर को लेकर भी सरकार बिल ला रही है जिसे रोकने के लिए विपक्ष ने पूरा जोर लगा दिया है तो वहीं सत्तापक्ष ने पारित कराने के लिए.
लोकसभा में जहां बीजेपी अकेले पूर्ण बहुमत में है तो वहीं राज्यसभा में तस्वीर इसके ठीक विपरीत है. राज्यसभा में एनडीए के सभी घटक दलों का संख्याबल जोड़ लें तो भी गठबंधन बहुमत के आंकड़े से दूर है. राज्यसभा में 92 सदस्यों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है. एनडीए के घटक दलों के साथ ही मनोनीत सदस्यों की संख्या भी जोड़ लें तो संख्याबल 110 तक पहुंचता है. राज्यसभा में इस समय 238 सदस्य हैं. ऐसे में दिल्ली के पावर वॉर पर संसद के उच्च सदन में ही पक्ष-विपक्ष का असली टेस्ट होगा.
दिल्ली को लेकर बिल पास कराने के लिए सरकार को 120 सदस्यों के वोट की और जरूरत होगी. तीन निर्दलीय सांसद हैं और तीनों का वोट भी सरकार के साथ जोड़ लें तो भी आंकड़ा 113 तक ही पहुंचता है. ऐसे में नजरें वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजेडी), भारत राष्ट्र समिति जैसी पार्टियों के रुख पर टिकी हैं. राज्यसभा में वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी के नौ-नौ सदस्य हैं जबकि केसीआर की पार्टी बीआरएस के भी सात सदस्य हैं. सूत्रों के मुताबिक वाईएसआर कांग्रेस दिल्ली को लेकर बिल पर सरकार का समर्थन करेगी.
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विपक्ष में रहते हुए सरकार का संकटमोचक बनीं ये पार्टियां
नागरिकता संशोधन विधेयक हो या तीन तलाक से जुड़ा बिल, जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने से संबंधित बिल हो या दिल्ली में उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ाने वाला बिल, पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के नौ साल के कार्यकाल में कई ऐसे मौके आए जब सरकार के लिए राज्यसभा में बिल पारित करा पाना मुश्किल माना जा रहा था. ऐसे मौकों पर विपक्ष में होते हुए भी वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल (बीजेडी), भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जैसी पार्टियों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकार का साथ दिया और उच्च सदन में उसकी राह आसान बना दी.

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