75 साल पहले गांधी ने जिसे अनहोनी कहा था, वह आज घटित हो रही है
The Wire
गांधी ने लिखा था कि कभी अगर देश की 'विशुद्ध संस्कृति' को हासिल करने का प्रयास हुआ तो उसके लिए इतिहास फिर से लिखना होगा. आज ऐसा हो रहा है. यह साबित करने के लिए कि यह देश सिर्फ़ हिंदुओं का है, हम अपना इतिहास मिटाकर नया ही इतिहास लिखने की कोशिश कर रहे हैं.
एक और 75वीं सालगिरह आने वाली है.2 अक्टूबर, 1947 के 75 साल हो रहे हैं. 2 अक्टूबर गांधी का जन्मदिन है. क्यों 1947 का 2 अक्टूबर महत्त्वपूर्ण है? क्योंकि अब हमें मालूम है कि यह गांधी के जीवनकाल का आख़िरी जन्मदिन होने वाला था. उन्होंने 78 साल पूरे कर लिए थे. ‘फ़र्ज़ कीजिए कि अनहोनी हो जाती है और (भारतीय) संघ में कोई भी मुसलमान हिफ़ाज़त और इज़्ज़त के साथ नहीं रह पाता है और वैसा ही हिंदुओं और सिखों के साथ पाकिस्तान में होता है. हमारी शिक्षा तब एक ज़हरीली शक़्ल अख़्तियार कर लेगी… फिर हम एक समय की खोज करेंगे जब हिंदुस्तान में एक ही धर्म था और हम उस विशुद्ध संस्कृति में वापस जाने की कोशिश करेंगे.
जिस देश में उस वक्त एक औसत भारतीय की उम्र 32 साल की थी, 78 साल जीना कुछ ख़ास तो था ही. गांधी को देखते यह अनुमान करना ग़लत न था कि वे और कई साल जी सकते हैं. लेकिन ऐसा होना न था. जल्दी ही, सिर्फ़ 3 महीने बाद, गांधी की हत्या कर दी जाने वाली थी. जैसे गांधी के स्वाभाविक तौर पर और कई साल जीने का अनुमान ग़लत न था, वैसे ही उनकी हत्या हो सकती है, यह आशंका भी उनके जीवन के आख़िरी सालों में घनी होती गई थी. ऐसा क़तई मुमकिन है कि हमें ऐसी कोई ऐतिहासिक तारीख़ न मिल पाए और अगर ऐसा हो भी जाए और हम वहां वापस जा सकें तो हम अपनी संस्कृति को उस विकृत समय में खींच ले जाएंगे और उचित ही पूरी दुनिया की दुत्कार हमें मिलेगी. उदाहरण के लिए अगर हम (अपने) इतिहास के मुग़ल काल को भूलने की बेकार कोशिश करेंगे तो हमें भूल जाना होगा कि दिल्ली में एक अज़ीम जामा मस्जिद थी जो दुनिया में लासानी हैसियत रखती थी या अलीगढ़ में कोई मुस्लिम यूनिवर्सिटी हुआ करती थी या दुनिया सात अचरजों में एक आगरा में कोई ताजमहल था या आगरा और दिल्ली में शानदार क़िले थे जिन्हें मुग़ल काल में तामीर किया गया था. हमें तब उस मक़सद को (विशुद्ध संस्कृति की खोज) हासिल करने के लिए इतिहास फिर से लिखना होगा.’
यह जन्मदिन ख़ास था. गांधी ने अपना जीवन जिस उद्देश्य को समर्पित किया था, वह पूरा हो गया था. जिन अंग्रेजों ने ‘भारत छोड़ो’ के जवाब में उन्हें और उनके मित्रों को जेल में डाल दिया था, आख़िरकार वे भारत छोड़कर जाने को बाध्य हो गए थे. अपने जीवनकाल में ही अपना उद्देश्य पूर्ण होते देखने से अधिक ख़ुशी क्या हो सकती है? इसलिए 15 अगस्त के ठीक बाद आने वाले इस जन्मदिन पर अगर उल्लास नहीं तो संतोष का अनुभव तो गांधी कर ही सकते थे.
मैंने लेकिन बात पूरी तरह ठीक नहीं की. अंग्रेजों से भारत को मुक्त करना उनके बृहद कार्यक्रम का एक हिस्सा भर था. इससे अधिक नहीं तो कम महत्त्व भी नहीं था उनके लिए भारत को जाति से मुक्त करना. अंग्रेज़ी हुकूमत को तो उखाड़ फेंकना फिर भी आसान था, जाति की जकड़ से देशवासियों को मुक्त करने का काम कहीं मुश्किल था.