7 साल में खुदकुशी के 122 मामले: क्या आईआईटी, आईआईएम और सेंट्रल यूनिवर्सिटी में जातिगत भेदभाव बड़ा मसला बन गया है?
BBC
इसी हफ़्ते सोमवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा को बताया कि देश के आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और भारत सरकार के पैसे से चलने वाले दूसरे उच्च शैक्षणिक संस्थानों में 2014 से 2021 के दरमियान 122 छात्रों ने खुदकुशी की है.
इसी हफ़्ते सोमवार को केंद्र सरकार ने लोकसभा को बताया कि देश के आईआईटी, आईआईएम, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और भारत सरकार के पैसे से चलने वाले दूसरे उच्च शैक्षणिक संस्थानों में 122 छात्रों ने साल 2014 से 2021 के दरमियान खुदकुशी कर ली.
इसी के साथ ये सवाल भी उठा कि क्या देश के सबसे बेहतरीन माने जाने वाले शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के ख़िलाफ़ कथित तौर पर होने वाले भेदभाव के कारण इन बच्चों ने खुदकुशी कर ली.
लोकसभा सांसद एकेपी चिनराज के एक सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में बताया कि खुदकुशी करने वाले छात्रों में 24 बच्चे अनुसूचित जाति, 41 अन्य पिछड़ा वर्ग, तीन अनुसूचित जनजाति और तीन अल्पसंख्यक समुदाय के थे.
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ आईआईटी, आईआईएम, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस, सेंट्रल यूनिवर्सिटी और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में इस अवधि के दौरान खुदकुशी के 121 मामले रिपोर्ट हुए.
ये बात भी ध्यान देने वाली है कि इन सात सालों में खुदकुशी करने वाले सभी छात्रों में 58 फ़ीसदी एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग से ताल्लुक रखते थे. खुदकुशी करने वाले छात्रों की बड़ी संख्या केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की थी.