1857 के विद्रोह की पहली गोली चलाई थी मंगल पांडे ने : विवेचना
BBC
165 साल पहले आज ही के दिन मंगल पांडे को अंग्रेज़ अफसरों पर गोली चलाने के अपराध में फांसी पर चढ़ाया गया था. उस दिन क्या कुछ हुआ था, बता रहे हैं रेहान फ़ज़ल विवेचना में
19वीं सदी के मध्य में कलकत्ता से 16 मील दूर बैरकपुर एक शाँत सैनिक छावनी हुआ करती थी. पूर्वी भारत में सबसे अधिक भारतीय सैनिक यहीं पर तैनात थे और अंग्रेज़ गवर्नर जनरल का निवास स्थान भी यहीं था. 1857 की शुरुआत में कोई ये कल्पना भी नहीं कर सकता था इस छावनी से ही अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह का पहला बिगुल बजाया जाएगा.
29 मार्च, 1857 को रविवार था. लेकिन रविवार की दोपहर की शाँति को भंग किया था एक सैनिक मंगल पांडे ने.
मशहूर इतिहासकार रुद्रांशु मुखर्जी अपनी किताब 'डेटलाइन 1857 रिवोल्ट अगेंस्ट द राज' में लिखते हैं, 'उस समय मंगल पांडे ने अपनी रेजिमेंट का कोट तो पहन रखा था लेकिन पतलून की जगह उन्होंने धोती पहनी हुई थी. वो नंगे पैर थे और उनके पास एक भरी हुई बंदूक थी. उन्होंने चिल्ला कर वहाँ पहुंच चुके सैनिकों को बहन की गाली देते हुए कहा, फिरंगी यहाँ पर हैं. तुम तैयार क्यों नहीं हो रहे हो? इन गोलियों को काटने भर से हम धर्मभृष्ट हो जाएंगे. धर्म के ख़ातिर उठ खड़े हो. तुमने मुझे ये सब करने के लिए उकसा तो दिया लेकिन अब तुम मेरा साथ नहीं दे रहे हो.'
मंगल पांडे के बगावती तेवर की वजह थी अंग्रेज़ सेना में इनफ़ील्ड पी - 53 रायफ़लों में इस्तेमाल की जाने वाली गोलियाँ. 1856 से पहले भारतीय सिपाही ब्राउन बीज़ नाम की बंदूक का इस्तेमाल करते थे.