12 भाषाओं में लिखी जाएंगी ग्रेजुएशन की किताबें, इच्छुक लेखकों की तलाश में UGC
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UGC द्वारा जारी नोटिफिकेशन के अनुसार, ग्रेजुएशन की किताबों को 12 भाषाओं में लिखा जाएगा. इच्छुक लेखकों के पास आयोग को अपनी स्वीकृति भेजने और ऑनलाइन फॉर्म के माध्यम से अपनी रुचि की अभिव्यक्ति (EOI) प्रस्तुत करने के लिए 30 जनवरी, 2024 तक का समय है.
UG Textbooks in Indian Languages: भारत में बोली जाने वाली अलग-अलग भाषाओं को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने नोटिफिकेशन जारी किया है जिसके मुताबिक, ग्रेजुएशन के कोर्स की किताबें भारत में बोली जाने वाली 12 अलग-अलग भाषाओं में लिखी जाएंगी. इसके लिए यूजीसी द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों के योग्य लेखकों से रुचि की अभिव्यक्ति (EOI) आमंत्रित की है. इच्छुक लेखकों के पास आयोग को अपनी स्वीकृति भेजने और उपलब्ध फॉर्म के माध्यम से अपनी रुचि की अभिव्यक्ति (Expression of Interest) प्रस्तुत करने के लिए 30 जनवरी, 2024 तक का समय है.
12 भाषाओं में लिखी जाएंगी कला, विज्ञान, वाणिज्य और सामाजिक विज्ञान की किताबें
यूजीसी के अध्यक्ष ममीडाला जगदेश कुमार का कहना है कि “यूजीसी 12 भारतीय भाषाओं में कला, विज्ञान, वाणिज्य और सामाजिक विज्ञान में ग्रेजुएशन लेवल पर पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराने पर काम कर रहा है. हम विभिन्न राज्यों में नोडल विश्वविद्यालयों की पहचान कर रहे हैं जो उन लेखकों की टीम बनाएंगे जो भारतीय भाषाओं में उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें लिख सकते हैं. यह प्रयास विश्वविद्यालयों में छात्रों को भारतीय भाषाओं के बारे में सीखने के अवसर प्रदान करेंगी. यह कदम एनईपी 2020 के लक्ष्य को देखते हुए उठाया गया है.
नई शिक्षा नीति के लक्ष्य पर लिया गया फैसला
नई शिक्षा नीति के अनुसार, सीबीएससी बोर्ड की पढ़ाई 22 भाषाओं में करवाई जाएगी. NEP 2020 की तीसरी वर्षगांठ के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'मुझे खुशी है कि अब शिक्षा क्षेत्रीय भाषाओं में दी जानी है इसलिए पुस्तकें 22 भारतीय भाषाओं में भी होंगी. युवाओं को उनकी प्रतिभा की जगह उनकी भाषाओं के आधार पर जज किया जाना उनके साथ सबसे बड़ा अन्याय है. मातृभाषा में पढ़ाई होने से भारत के युवा टैलेंट के साथ अब असली न्याय की शुरुआत होने जा रही है और यह सामाजिक न्याय का भी अहम कदम है. दुनिया में सैकड़ों अलग-अलग भाषाएं हैं और हर भाषा की अपनी अहमियत है. दुनिया के ज्यादातर देशों ने अपनी भाषा की ही बदौलत बढ़त हासिल की है'.
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