क़ानून के परिप्रेक्ष्य में मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता: केरल हाईकोर्ट
The Wire
अदालत एक 26 वर्षीय युवक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने बलात्कार के मामले में दोषसिद्धि को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि पीड़िता आरोपी से प्रेम करती थी, यह नहीं माना जा सकता कि उसने शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी.
कोच्चिः केरल हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में दोषी करार दिए गए एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर विचार करते हुए कहा कि अपरिहार्य मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता है.
जस्टिस आर नारायण पिशारदी ने अपने आदेश में कहा कि केवल इसलिए कि पीड़िता आरोपी से प्यार करती थी, यह नहीं माना जा सकता कि उसने संबंध बनाने के लिए सहमति दी थी.
अदालत ने कहा कि सहमति और आत्मसमर्पण (सबमिशन) के बीच काफी अंतर होता है. प्रत्येक सहमति में एक सबमिशन शामिल होता है लेकिन हर सबमिशन में सहमति शामिल नहीं होती.
अदालत ने 31 तारीख के अपने आदेश में कहा, ‘कानून के परिप्रेक्ष्य में मजबूरी के सामने बेबसी को सहमति नहीं माना जा सकता. सहमति के लिए किसी कृत्य के बारे में और इसके नैतिक प्रभाव का बोध होना आवश्यक है. केवल इस वजह से कि पीड़िता आरोपी से प्यार करती थी, यह नहीं कहा जा सकता कि उसने शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी थी.’