क़ानूनों की सख़्ती को मानवता के चलते स्थगित किया जा सकता है
The Wire
इंसानियत का ज़िक्र कहीं तहखाने में फ़ेंक दी गई संवेदना को जगाने की ताक़त रखता है, इसीलिए सत्ता इस शब्द को बर्दाश्त नहीं कर सकती. बावजूद ऐतिहासिक दुरुपयोग के मानवता शब्द में एक विस्फोटक क्षमता है. इसे अगर ईमानदारी से इस्तेमाल करें, तो यह भीतर तक जमी बेहिसी की चट्टानी परतों को छिन्न-भिन्न कर सकता है.
‘जब भी मैं इंसानी जिंदगी की बात सुनता हूं मेरा हाथ रिवॉल्वर पर चला जाता है.’ 26 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय में ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौतों को रोकने के लिए चल रही सुनवाई में भारत के सॉलिसिटर जनरल की टिप्पणी सुनकर यह वाक्य दिमाग में कौंधा. उन्होंने इंसानी जिंदगियों को बचाने के लिए की जा रही अपीलों पर खीज जाहिर करते हुए कहा, ‘हममें से कोई भी हर वाक्य को इंसानी ज़िंदगी की दुहाई से ख़त्म करके मामले को नाटकीय न बनाए.’ मुझे लगा कि वे अदालत को यह कहना चाह रहे थे कि इंसानी ज़िंदगी की दुहाई सुन-सुनकर उनका दिमाग खराब हो गया है. अगर अदालत की यह बहस हैंस जोस्ट के नाटक श्लागेतेर के किसी दृश्य में होती तो सॉलिसिटर जनरल को इस लिहाज की ज़रूरत न होती जो यहां उन्हें दिखाने की मजबूरी जाने क्यों थी! इंसानी ज़िंदगी का जिक्र उन्हें ड्रामा लग रहा था. वे कह सकते थे ‘ इंसानी ज़िंदगी का जिक्र सुनते ही मेरा हाथ रिवॉल्वर पर चला जाता है.’More Related News