हूतियों पर US अटैक, लाल सागर बढ़ता तनाव, इस बीच ईरान क्यों जा रहे हैं विदेश मंत्री
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जयशंकर की तेहरान यात्रा इजराइल-हमास संघर्ष के बीच लाल सागर में व्यापारिक जहाजों को हुती विद्रोहियों द्वारा निशाना बनाए जाने पर बढ़ती वैश्विक चिंताओं की पृष्ठभूमि में हो रही है.भारत लाल सागर में उभरती सुरक्षा स्थिति पर करीब से नजर रखे हुए है.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर आज से दो दिवसीय ईरान दौरे पर जा रहे हैं. उनका यह दौरा तब हो रहा है जब इजराइल-हमास युद्ध के बीच लाल सागर में हूती विद्रोहियों द्वारा मालवाहक जहाजों पर हमले किए जा रहे हैं और उसके बाद ब्रिटेन तथा अमेरिका मिलका यमन में हूती ठिकानों को निशाना बनाकर हवाई हमले कर रहे हैं. अपनी इस यात्रा के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर अपने ईरानी समकक्ष होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन के साथ लाल सागर में उभरती सुरक्षा स्थिति सहित कई प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करेंगे. भारत लाल सागर के मौजूदा हालातों पर करीब से नजर रख रहा है.
अहम माना जा रहा है जयशंकर का दौरा
विदेश मंत्रालय (एमईए) ने कहा कि दोनों मंत्री द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे.मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान में कहा कि विदेश मंत्री जयशंकर 14 से 15 जनवरी तक ईरान का दौरा करेंगे.बयान में कहा गया है, ‘वह ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन से मुलाकात करेंगे और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे.’
लाल सागर, जहां हूती हमले कर रहे हैं उसे दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक माना जाता है. ईरान पर आरोप लगते रहे हैं कि वह न केवल हमास बल्कि हूती और हिजबुल्ला को आर्थिक और सैन्य मदद देता है. अमेरिका यूएन में हूती विद्रोहियों के हमलों के लिए ईरान को जिम्मेदार बता चुका है. ऐसे में जयशंकर की यह यात्रा काफी अहम मानी जा रही है.
यात्रा से पहले जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से गुरुवार को फोन पर बातचीत की. इस दौरान लाल सागर का मुद्दा उठा था. भारतीय नौसेना ने उत्तर और मध्य अरब सागर सहित महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में समुद्री वातावरण को ध्यान में रखते हुए समुद्री सुरक्षा अभियानों के लिए अपने अग्रिम पंक्ति के जहाजों और निगरानी विमानों की तैनाती पहले ही बढ़ा दी है.जयशंकर और अमीर-अब्दुल्लाहियन के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देने पर भी विचार-विमर्श करने की संभावना है.
क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बढ़ाने पर है भारत का जोर
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