हिजाब बैन: स्कूल यूनिफॉर्म की सरकारी समझ छात्राओं के शिक्षा के अधिकार के ऊपर नहीं है
The Wire
स्कूल की वर्दी या यूनिफॉर्म के पीछे का तर्क छात्रों में बराबरी की भावना स्थापित करना है. वह वर्दी विविधता को पूरी तरह समाप्त कर एकरूपता थोपने के लिए नहीं है. उस विविधता को पगड़ी, हिजाब, टीके, बिंदी व्यक्त करते हैं. क्या किसी की पगड़ी से किसी अन्य में असमानता की भावना या हीनभावना पैदा होती है? अगर नहीं
कर्नाटक के उच्च न्यायालय ने शिक्षा संस्थानों, कक्षाओं में हिजाब पर प्रतिबंध लगानेवाले राज्य सरकार के आदेश को उचित ठहराया है. यह निर्णय अपनी पहचान के साथ शिक्षा ग्रहण करने के अधिकार को सीमित करता है.
जिस तरह अदालत में बहस चल रही थी, उसे देखते हुए यह निर्णय अप्रत्याशित नहीं है. वैसे भी अब भारतीय अदालतों में इंसाफ संयोग और अपवाद बन गया लगता है. पूरा या आधा या विलंबित जब वह मिलता है तो सुखद आश्चर्य होता है.
हिजाब को मना कर देनेवाले इस फैसले की निराशा के बीच दिल्ली में इशरत जहां को प्राथमिक न्यायालय से जमानत और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केरल के मीडिया वन चैनल पर लगे प्रतिबंध पर रोक ने भारतीय न्याय व्यवस्था से पूरी तरह भरोसा उठ जाने की हताशा से सावधान किया है. फिर भी कर्नाटक उच्च न्यायालय के निर्णय ने एक खतरनाक उदाहरण पेश किया है.
अदालत इस नतीजे के पक्ष में कई तर्क देती है. सबसे पहले वह यह तय करती है कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है. इसलिए मुसलमान छात्राएं यह दावा नहीं कर सकतीं कि हिजाब उनकी धार्मिक आस्था के अभ्यास का मामला है जो संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकार है.