
हिंदुस्तानियों की मां का दर्जा पाने वाली कस्तूरबा के निधन को किस तरह याद किया जाना चाहिए
The Wire
प्रासंगिक: भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागिता के चलते गिरफ़्तार की गईं कस्तूरबा ने हिरासत में दो बार हृदयाघात झेला और कई माह बिस्तर पर पड़े रहने के बाद 22 फरवरी 1944 को उनका निधन हो गया. सुभाष चंद्र बोस ने इस ‘निर्मम हत्या के लिए’ ब्रिटिश सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि ‘कस्तूरबा एक शहीद की मौत मरी हैं.’
बर्तानवी उपनिवेशवाद की ज्यादतियों को लेकर जब जब चर्चा खड़ी होती है, उस वक्त़ हिरासत में हुई एक मौत को लेकर आम तौर पर बात नहीं होती या कम से कम इस मौत को इस तरह देखा नहीं जाता. बात कर रहे हैं 22 फरवरी 1944 को बर्तानवी हुकूमत की हिरासत में हुए कस्तूरबा गांधी के इंतकाल की. ‘इन पशुओं के लिए मैं केवल अपनी घृणा व्यक्त कर सकता हूं जो दावा तो आजादी, न्याय और नैतिकता का करते हैं लेकिन असल में ऐसी निर्मम हत्या के दोषी हैं. वे हिंदुस्तानियों को समझ नहीं पाए हैं….अंग्रेजों ने… गांधीजी को एक सामान्य अपराधी की तरह जेल में ठूंस दिया. वे और उनकी महान पत्नी जेल में मर जाने को तैयार थे लेकिन एक परतंत्र देश में जेल से बाहर आने को तैयार नहीं थे. अंग्रेजों ने यह तय कर लिया था कि कस्तूरबा जेल में अपने पति की आंखों के सामने हृदयरोग से दम तोड़ें. उनकी यह अपराधियों जैसी इच्छा पूरी हुई है, यह मौत हत्या से कम नहीं है.’ ‘… इस महान महिला को जो हिंदुस्तानियों के लिए मां की तरह थी, मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और इस शोक की घड़ी में मैं गांधीजी के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं… कस्तूरबा हिंदुस्तान की उन लाखों बेटियों के लिए एक प्रेरणास्रोत थीं जिनके साथ वे रहती थीं और जिनसे वे अपनी मातृभूमि के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मिली थीं. जहां-जहां मैं गई, मैंने महिलाओं की छाती पर, सिर पर, पैरों पर पुलिस की लाठियों के निशान देखे… मुझे यह जानकर और पीड़ा हुई कि पुलिस ने बच्चों पर भी लाठियां चलाईं, महिलाओं के बाल खींचे, महिलाओं की छातियों पर मुक्के मारे और उन्हें गालियां दीं… यह मेरी जिंदगी का पहला मौका है कि मैंने गुजरात की महिलाओं पर हुई ज्यादतियों को देखा है. मैंने कहीं भी पुलिस द्वारा महिलाओं पर की गई ऐसी ज्यादती को देखा नहीं है. (पेज 371, रामचंद्र गुहा, ‘गांधी- द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया, पेंग्विन- रैंडम हाउस)
इतिहास इस बात का गवाह है कि उपनिवेशवादी हुक्मरानों के बेहद क्रूर और निर्मम रवैये ने इस मौत को करीब ला खड़ा किया था क्योंकि उनके गिरते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने कस्तूरबा को रिहा करने से मना किया था. उन्हें हिरासत में दो बार दिल का दौरा पड़ा था और इसके चलते वह चार माह तक बिस्तर तक ही सीमित रहीं. दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के बाद से ही वे अपने महान पति के साथ परीक्षाओं और कष्टों में शामिल थी और यह सामीप्य तीस साल तक चला. अनेक बार जेल जाने के कारण उनका स्वास्थ्य प्रभावित हुआ लेकिन अपने चौहत्तरवे वर्ष में भी उन्हें जेल जाने से जरा भी डर न लगा. महात्मा गांधी ने जब भी सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया, उस संघर्ष में कस्तूरबा पहली पंक्ति में उनके साथ खड़ी थीं हिंदुस्तान की बेटियों के लिए एक चमकते हुए उदाहरण के रूप में और हिंदुस्तान के बेटों के लिए एक चुनौती के रूप में कि वे भी हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में अपनी बहनों से पीछे नहीं रहें.’ (नेताजी संपूर्ण वाङ्मय, पेज 177-178, टेस्टामेंट ऑफ सुभाष बोस, पेज 69-70)
मालूम हो कि कस्तूरबा को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में अपनी सहभागिता के चलते गिरफ्तार किया गया था. जैसा कि सभी जानते हैं ब्रिटिशों के खिलाफ खड़े इस उग्र जनांदोलन में हजारों लोग गिरफ्तार हुए थे, तमाम लोग मारे गए थे, कई स्थानों पर जनाक्रोश को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार को बाकायदा हेलिकॉप्टरों से गोली चलानी पड़ी थी.
गौरतलब है कि उनकी इस मौत को लेकर देश-दुनिया के अखबारों- पत्रिकाओं में बयान छपे; तमाम अग्रणियों ने उनके जीवन और संघर्ष को याद किया.