
हिंदी सिनेमा अभी भी जाति के मुद्दों पर विशिष्ट चुप्पी बनाए रखना पसंद करता है: अमोल पालेकर
The Wire
12 साल के लंबे अंतराल के बाद फिल्मों में वापसी कर रहे दिग्गज अभिनेता अमोल पालेकर का मानना है कि हिंदी सिनेमा में जाति को एक मुद्दे के रूप में शायद ही कभी उठाया जाता है. उन्होंने कहा कि इस तरह के विषय परेशान करने वाले होते हैं और परंपरागत रूप से मनोरंजक नहीं होते हैं. निर्माता अपनी सिनेमाई यात्रा के दौरान ऐसी फिल्मों को बनाने से कतराते हैं.
मुंबई: फिल्म ‘200-हल्ला हो’ के माध्यम से 12 साल के लंबे अंतराल के बाद फिल्मों में वापसी कर रहे दिग्गज अभिनेता अमोल पालेकर का मानना है कि हिंदी सिनेमा में जाति को एक मुद्दे के रूप में शायद ही कभी उठाया जाता है, क्योंकि यह पारंपरिक रूप से मनोरंजक मुद्दा नहीं है. फिल्म ‘200-हल्ला हो’ दलित महिलाओं की सच्ची कहानी से प्रेरित है, जिसने एक बलात्कारी पर खुली अदालत में हमला किया था. सार्थक दासगुप्ता द्वारा निर्देशित और दासगुप्ता और गौरव शर्मा द्वारा सह-लिखित फिल्म 200 दलित महिलाओं की नजरों के माध्यम से यौन हिंसा, जाति उत्पीड़न, भ्रष्टाचार और कानूनी खामियों के मुद्दों को छूती है. 1970 के दशक में ‘रजनीगंधा’, ‘चितचोर’, ‘छोटी सी बात’, ‘गोलमाल’ जैसी हिंदी फिल्मों के नायक पालेकर ने कहा कि निर्माता आमतौर पर ऐसे ‘परेशान करने वाले’ विषयों से कतराते हैं.More Related News