
हिंदी साहित्य को केंद्र में लाने के लिए सतत प्रयासों की ज़रूरत: बुकर पुरस्कार विजेता गीतांजलि श्री
The Wire
अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखक गीतांजलि श्री का कहना है कि मनुष्यों में एक से अधिक भाषा को जानने की क्षमता है. हमारी ऐसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए, जो लोगों को अपनी मातृ भाषा या अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी को जानने के लिए प्रोत्साहित करे, इसमें समस्या क्या है, लेकिन इसके राजनीति में घिर जाने से यह एक तरह की अनसुलझी समस्या बन गया है.
लंदन/नई दिल्ली: किसी हिंदी उपन्यास के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखक गीतांजलि श्री के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को पाने से पहले का सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा.
श्री के मूल उपन्यास का नाम ‘रेत समाधि’ है और इसका अंग्रेजी संस्करण है ‘टूंब ऑफ सैंड’. इसका अनुवाद डेज़ी रॉकवेल ने किया है.
पुरस्कार की घोषणा होने के बाद से दिल्ली में रह रहीं गीतांजलि श्री और अमेरिकी अनुवादक डेज़ी रॉकवेल को दुनिया भर से बधाई संदेश मिल रहे हैं और दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है.
इस पुरस्कार के बाद से हिंदी साहित्य भी चर्चा के केंद्र में बना हुआ है, लेकिन गीतांजलि का मानना है कि इस लय को बनाए रखने के लिए कुछ गंभीर प्रयासों की आवश्यकता होगी.