
हसीन दिलरूबा का दिनेश पंडित: याद आया वेद प्रकाश,सुरेंद्र मोहन, गुलशन नंदा का दौर
The Quint
Haseen dilruba dinesh pandit: हसीन दिलरूबा का दिनेश पंडित: याद आया वेद प्रकाश,सुरेंद्र मोहन, गुलशन नंदा का दौर. dinesh pandit inspired by hindi pulp fiction writers ved prakash sharma Surender Mohan Pathak
दिनेश पंडित कौन है? हसीन दिलरूबा (Haseen Dillruba) फिल्म के बाद यह सवाल सबकी जुबान पर है. इस सवाल के जवाब के लिए आपको और मुझे थोड़ा फ्लैशबैक में जाना होगा.वर्दी वाला गुंडा, प्यार का मोहरा, फंस ही गई कातिल बीवी, सोलहवां सावन, ग्रहणी का प्रतिशोध.... एक वक्त था जब भारत के हिंदी बेल्ट में ऐसी पल्प फिक्शन थ्रिलर उपन्यासों की बहुतायत थी. तब लोग इसे बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों या सिनेमा घरों के बाहर से खरीदते थे और सिरहाने तकिए के नीचे छुपा के रखते थे.यह नहीं तो सरस सलिल और मनोहर कहानियां ही सही.यकीनन यह 'इंटरनेट हीन' समाज के लिए एक 'अलग' तरह के मनोरंजन का साधन था और इसके लिए प्रॉक्सी VPN की जरूरत भी नहीं पड़ती थी.हां, तो दिनेश पंडित कौन है? इस सवाल के जवाब में क्विंट से बातचीत के दौरान हसीन दिलरूबा फिल्म की लेखिका कनिका ढिल्लों ने कहा कि दिनेश पंडित का किरदार हिंदी पल्प फिक्शन के सारे लेखकों को समर्पित है, जैसे सुरेंद्र पाठक जी और वेद प्रकाश शर्मा जी. इन लेखकों का पाठक वर्ग विशाल था और क्रेज तो ऐसा कि पहले पढ़ने को लेकर दोस्तों के बीच मार हो जाए. शायद 'जेनरेशन Z' के लिए यह यकीन करना मुश्किल होगा कि 'नेटफ्लिक्स एंड चिल' के पहले 'तकिए के नीचे से निकाल एंड चिल' का दौर भी था.फिल्म हसीन दिलरुबा में दिनेश पंडित का उपन्यास पढ़ती तापसी का किरदार(फोटो: फिल्म स्क्रीनशॉट)ADVERTISEMENTवेद प्रकाश शर्माअगर हिंदी बेल्ट के पल्प फिक्शन लेखकों की बात होगी तो वह वेद प्रकाश शर्मा के नाम के बिना पूरी नहीं हो सकती. कहते हैं कि जब बड़े-बड़े संपादक और लेखक आम पाठक वर्ग तक पहुंचने के लिए 'मैनेजमेंट' और 'साहित्यिक बुद्धि' का इस्तेमाल कर रहे थे तब मेरठ का एक शख्स दशकों तक पूरे हिंदी पल्प फिक्शन के पाठकों पर राज कर रहा था.अकेले 'वर्दी वाला गुंडा' के पहले संस्करण की 15 लाख प्रतियां छापी गई थी और हाथों-हाथ बिक गई. बाद के संस्करण में प्रतियों की तो गिनती भी नहीं रखी गई. अपने पाठकों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने कभी 'सेक्स कंटेंट' का इस्तेमाल नहीं किया. बल्कि उनके उपन्यासों में मौजूद थ्रिलर ने उन्हें युवाओं और महिलाओं तक के बीच बड़ी पहचान दी.उनके कई उपन्यासों पर बॉलीवुड में फिल्में भी बनी. 1985 में उनके उपन्यास 'बहू मांगे इंसाफ' पर शशिलाल नायर ने 'ब...More Related News