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हरियाणा में OBC दांव, बंगाल में हिंदुत्व, महाराष्ट्र में नगदी... चुनावी झटके के बाद BJP बदल रही रणनीति?
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लोकसभा चुनाव में झटके के बाद भारतीय जनता पार्टी अब अपनी चुनावी रणनीति बदलने पर विचार कर रही है. नई रणनीति में जमीनी स्तर पर ज्यादा फोकस किए जाने का सुझाव दिया जा रहा है. क्षेत्रीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाने के लिए कहा जा रहा है. चुनावी राज्य हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र और झारखंड तक में बदली रणनीतियों पर काम किया जा रहा है. हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार युवाओं से लेकर महिलाओं और किसानों के हित में बड़े फैसले लेने से नहीं हिचक रही है.
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी के बड़े सबक दिए हैं. यही वजह है कि पार्टी आलाकमान अब अपनी चुनावी रणनीति में बड़े बदलाव करने जा रहा है. ग्राउंड कनेक्ट से लेकर युवा वर्ग को साधने की कवायद शुरू हो गई है. महाराष्ट्र, हरियाणा और बंगाल तक के माहौल में बदलाव देखा जा रहा है. जिन राज्यों में बीजेपी खुद मजबूत मान रही थी, वहां नतीजों ने नाराजगी का आइना दिखा दिया है. अब क्षेत्रीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाने की वकालत होने लगी है. सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की नसीहत दी जा रही है. पार्टी आलाकमान भी आंतरिक समीक्षाएं कर रहा है. बीजेपी अपने संदेश और प्रचार के तरीके को भी सुधारने की योजना बना रही है.
दरअसल, लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 400 पार का नारा दिया, लेकिन सिर्फ 240 सीटों पर ही सिमटकर रह गई. सरकार बनाने के लिए अपने दम पर बहुमत भी हासिल नहीं कर सकी. एनडीए के सहयोगियों की बदौलत बीजेपी ने देश में तीसरी बार सरकार तो बना ली, लेकिन अब उन गलतियों पर पर्दा डालने की बजाय सबक के तौर पर लिया जा रहा है. यही वजह है कि खराब प्रदर्शन को लेकर सबसे पहले उत्तर प्रदेश यूनिट से रिपोर्ट तलब की गई है. यूपी बीजेपी चीफ भूपेंद्र चौधरी ने मंगलवार को पार्टी आलाकमान से मुलाकात की और 15 पेज की अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इस रिपोर्ट में 40 हजार कार्यकर्ताओं का फीडबैक होने का दावा किया गया है. इस रिपोर्ट में कार्यकर्ताओं के असंतोष और प्रशासन की मनमानी को हार की प्रमुख वजह बताया है. रिपोर्ट में आरक्षण में विसंगतियां, ठेके पर नौकरियों का भी जिक्र है.
हरियाणा में बीजेपी ने OBC दांव खेला?
इस साल के अंत तक हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार है. झारखंड में बीजेपी विपक्ष में है. बीजेपी ने अब इन चुनावी राज्यों में फोकस बढ़ा दिया है. पिछले दिनों में कुछ ऐसे फैसले लिए गए, जो सीधे तौर पर चुनाव से जोड़कर देखे जा रहे हैं. हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) पर फोकस करते देखा जा रहा है. चूंकि यहां किसान और जाट वोटर्स को बीजेपी से नाराज माना जा रहा है. ऐसे में बीजेपी गैर जाट पॉलिटिक्स पर भरोसा कर रही है और आलाकमान ने ओबीसी समुदाय के नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां देकर विजन भी साफ कर दिया है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आलाकमान ने अचानक मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उनकी जगह पिछड़ा वर्ग से आने वाले नायब सैनी को जिम्मेदारी सौंप दी. बीजेपी ने अपनी सहयोगी पार्टी 'जजपा' के साथ गठबंधन भी तोड़ दिया था. पार्टी को उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में इसका फायदा मिलेगा. हालांकि, नतीजे आए तो बड़ा नुकसान झेलना पड़ा. पिछले आम चुनाव में हरियाणा में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी ने आधी सीटें खो दीं. यानी 10 में से 5 लोकसभा सीटों पर ही जीत मिल सकी. बीजेपी को 46.11 फीसदी और कांग्रेस 43.67 फीसदी वोट मिले.
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इस झटके के पीछे एंटी इनकंबेंसी फैक्टर एक बड़ी वजह बताई गई. संगठन इसे सबक के तौर पर ले रहा है. अब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने ब्राह्मण कार्ड खेला है और मोहन लाल बड़ौली को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. अब तक सैनी के पास प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी थी. हरियाणा के प्रदेश प्रभारी डॉ. सतीश पूनिया जाट चेहरे हैं और राजस्थान के बड़े नेता माने जाते हैं. हरियाणा में ओबीसी और ब्राह्मण समुदायों को मिलाकर करीब 35 फीसदी वोटर्स हैं. राज्य में 21 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं. जबकि जाट मतदाता 22.2 प्रतिशत हैं. करीब 20 फीसदी दलित आबादी है.
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दिल्ली विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल में बीजेपी को बड़ी जीत मिलने के संकेत मिल रहे हैं. आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. सर्वे के अनुसार बीजेपी को 50 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि आम आदमी पार्टी 20 से कम सीटों पर सिमट सकती है.
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दिल्ली दंगों के समय आम आदमी पार्टी की भूमिका पर सवाल उठे हैं. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने पुलिस स्टेशन का दौरा किया था. भाजपा और कांग्रेस पर आरोप लगे कि वे दंगों के दौरान निष्क्रिय रहे. आम आदमी पार्टी ने अपने कोर वोटर मुस्लिम समुदाय का समर्थन खो दिया है. सर्वे के अनुसार, 83% मुस्लिम वोट आम आदमी पार्टी के पक्ष में थे, जो अब घटकर 20% रह गए हैं.
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