हरियाणा में AAP की एंट्री से कांग्रेस का गेम बिगड़ेगा या बीजेपी के लिए बदलेंगे हालात? समझिए क्या है समीकरण
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इस साल के अंत में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं. AAP ने हाल ही में लोकसभा चुनाव अपने इंडिया ब्लॉक पार्टनर कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. कांग्रेस ने 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर जीत हासिल की. AAP ने कुरूक्षेत्र सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई थी. AAP ने कुरूक्षेत्र सीट पर सुशील गुप्ता को मैदान में उतारा था. AAP को 29 हजार वोटों से हार मिली.
आम आदमी पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से किनारा कर लिया है और हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव में अकेले सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. AAP ने यह भी साफ कर दिया कि वो हरियाणा में अकेले क्यों चुनाव लड़ना चाहती है? पार्टी को लगता है कि राज्य में उसका संगठन मजबूत हो रहा है और बीजेपी की सरकार के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी है. 10 साल की सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा भी है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा है. हालांकि, आंकड़े AAP के पक्ष में नहीं है. AAP ने हरियाणा में कई बार चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि हरियाणा में AAP के अकेले चुनाव लड़ने से कांग्रेस का गेम बिगड़ेगा या बीजेपी के लिए हालात बदलेंगे? समझिए...
इस साल के अंत में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं. AAP ने हाल ही में लोकसभा चुनाव अपने इंडिया ब्लॉक पार्टनर कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था. कांग्रेस ने 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और पांच सीटों पर जीत हासिल की. AAP ने कुरूक्षेत्र सीट पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नसीब नहीं हुई थी. AAP ने कुरूक्षेत्र सीट पर सुशील गुप्ता को मैदान में उतारा था. AAP को 29 हजार वोटों से हार मिली. बीजेपी के नवीन जिंदल को 542,175 वोट मिले. AAP के गुप्ता को 513,154 वोट मिले. AAP ने 2019 में भी विधानसभा चुनाव लड़ा था और 46 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. पार्टी को पूरे राज्य में सिर्फ 59,839 वोट मिल सके थे. इससे पहले कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने संकेत दिया था कि पार्टी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ सकती है. कांग्रेस नेता का कहना था कि वे अपने दम पर सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने में सक्षम हैं.
बीजेपी बदल रही है रणनीति?
हरियाणा में बीजेपी की सरकार है. इस बार बीजेपी की कोशिश है कि जीत की हैट्रिक लगाई जाए. हालांकि, यह आसान नहीं है. क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी को अलर्ट कर दिया है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने 5-5 सीटें जीती हैं. इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था. 2014 में भी सात सीटें जीती थीं. यही वजह है कि इस बार के नतीजों के बाद पार्टी ने अपनी पूरी रणनीति बदल ली है और हर वर्ग को साधने का फुल प्रूफ प्लान जमीन पर उतार दिया है. सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस किया जा रहा है. मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ओबीसी चेहरे हैं. प्रदेश अध्यक्ष के लिए ब्राह्मण फेस मोहन लाल बड़ौली को बनाकर नया दांव खेला है. प्रदेश प्रभारी सतीश पूनिया जाट समाज से आते हैं. किसानों और युवाओं की नाराजगी भी कम करने की कोशिशें की जा रही हैं. ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर बढ़ाने का ऐलान कर दिया है. ओबीसी जातियों की B कैटेगरी के लिए भी नया कोटा तय कर दिया है. चुनाव से पहले इसे बड़ा दांव माना जा रहा है. हरियाणा में सबसे बड़ा वोट बैंक ओबीसी का है. हरियाणा में ओबीसी और ब्राह्मण समुदायों को मिलाकर करीब 35 फीसदी वोटर्स हैं. राज्य में 21 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं. जबकि जाट मतदाता 22.2 प्रतिशत हैं. करीब 20 फीसदी दलित आबादी है.
AAP की एंट्री से कांग्रेस और बीजेपी में किसे नुकसान?
जानकार कहते हैं कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी के अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. AAP का उभरना कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है. विशेषकर शहरी और युवा वोटर्स को AAP अपने वोटर्स में बदल सकती है. दरअसल, शहरी और युवा भ्रष्टाचार और सुशासन के मुद्दे पर AAP की नीतियों की ओर आकर्षित हो सकते हैं. हालांकि, इससे बीजेपी को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ हो सकता है. क्योंकि विरोधी वोटों का विभाजन बीजेपी की जीत की संभावनाओं को बढ़ा सकता है. यह समीकरण अलग-अलग चुनाव लड़ने से बनते दिख रहे हैं.
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